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DevBhoomi Insider Desk
• Tue, 18 Oct 2022 2:30 pm IST


चलती रही जंग तो कितना महंगा होगा जीना


रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को कई महीने हो चुके हैं। तुर्की की मध्यस्थता में कई बैठकों के बाद भी दोनों देश पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। इस युद्ध के कारण वैश्विक ऊर्जा प्रणाली पर काफी गहरा असर पड़ा है। तेल और गैस उत्पादक देशों से सप्लाई में रुकावट के साथ उत्पादन क्षमता भी प्रभावित हुई है। पूरी दुनिया में इसके कारण तेल और गैस के दाम बढ़े हैं।

इस बीच ओपेक समूह के 13 देशों और प्लस समूह के 10 देशों ने नवंबर से अपनी उत्पादन क्षमता में 20 लाख बैरल घटाने का फैसला किया है। ओपेक देशों में सबसे बड़े तेल उत्पादक सऊदी अरब का दबदबा है, तो ओपेक प्लस में रूस की चलती है। रूस की रिजर्व आर्मी में तेल और गैस सेक्टर में काम कर रहे लोगों की भर्ती से संकट दोगुना होता दिख रहा है। इसके चलते भारत सहित तेल और गैस आयात करने वाले देशों के माथे पर शिकन दिखने लगी है। आइए देखते हैं कि इसका भारत पर क्या असर होगा।

यूक्रेन युद्ध से पहले भारत अपनी कुल जरूरत का 0.2 फीसदी तेल ही रूस से आयात करता था। मगर जुलाई में रूस से समुद्र के रास्ते तेल के सबसे बड़े आयातक के तौर पर भारत ने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है।
आंकड़ों से समझा जाए तो इस वक्त भारत और चीन जितना तेल रूस से आयात कर रहे हैं, वह यूरोप के 27 सदस्य देशों से भी ज्यादा है। अप्रैल से अब तक भारत का रूस से कच्चे तेल का आयात करीब 50 फीसदी बढ़ा है।
अगस्त तक रूस से भारत का तेल आयात अपने उच्चतम स्तर पर था। हालांकि, अगस्त-सितंबर में आयात का आंकड़ा नीचे आया है। इसके बावजूद भारत इस वक्त रूस से प्रतिदिन 10 लाख बैरल से ज्यादा तेल खरीद रहा है।
ऐसे में अगर रूस से तेल आयात में कमी होती है, तो इसका प्रभाव आम लोगों पर पड़ने वाला है। बढ़ती महंगाई के बीच तेल के दामों में बढ़ोतरी हो सकती है।
शेयर बाजार पर भी तेल-गैस संकट का असर पड़ता दिख रहा है। घरेलू शेयर बाजार विदेशी फंड की चाल के साथ कच्चे तेल के भार से भी प्रभावित होता है।
ऐसे में ओपेक के फैसले और वैश्विक बाजार में कच्चे तेलों के दाम बढ़ने की आशंका से आने वाले महीनों में भारतीय शेयर बाजार डुबकी लगा सकता है।

दुनियाभर में सप्लाई चेन में दिक्कतों के चलते महंगाई बढ़ी है। दुनिया भर की हर करेंसी डॉलर के आगे पस्त हो रही हैं। इससे आयात और महंगा होता जा रहा है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 640 अरब डॉलर से घटकर 532 अरब डॉलर पर आ चुका है। डॉलर के मुकाबले रुपया के कमजोर होने से महंगाई भी काबू से बाहर हो रही है। अमेरिका में महंगाई 40 साल के उच्चतम स्तर पर चली गई, तो वहां के सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला शुरू किया। ऐसे में भारत में भी खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी हुई और आरबीआई ने ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला शुरू किया जो अभी तक जारी है। रेपो रेट 1.90 फीसदी तक बढ़ाया जा चुका है। सितंबर में महंगाई दर फिर से 7.41 फीसदी पर जा पहुंची है जिसके चलते ईएमआई और महंगी हो सकती है।

सबका हाल खराब
एक आंकड़े के मुताबिक यूक्रेन-रूस युद्ध से पहले यूरोपीय देश रूस से प्रतिदिन करीब 14 लाख बैरल तेल लेते थे। यह आंकड़ा अब 10 लाख बैरल से नीचे आ गया है। वैसे जानकारी के मुताबिक दिसंबर में पश्चिमी देश प्रतिबंधों में इजाफा कर सकते हैं। यानी एक बात तो साफ है कि पश्चिमी देशों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ने वाला लेकिन कई अन्य देशों पर ओपेक के फैसले और रूस के सैन्य भर्ती कदम का विपरीत असर देखने को मिलेगा। ओपेक के उत्पादन सीमित करने के चलते दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमतें जबरदस्त रूप से बढ़ी हैं। अब अगर रूस भी यही करता है तो कच्चे तेल की कीमतों तले उसके मित्र देश भी पिसेंगे।  

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स