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• Tue, 6 Apr 2021 3:45 pm IST


रामायण में भगवान राम के हैं कई अनोखे रूप


पश्चिम बंगाल में चल रही चुनावी तकरार के बीच पिछले दिनों यह सवाल भी उठा कि भगवान राम और मां दुर्गा में कौन श्रेष्ठ है। राजनीति की दुनिया के अपने तर्क होते हैं। यहां होने वाले सवाल-जवाब भी उससे अप्रभावित नहीं रहते। इसलिए राजनीति को उसके हाल पर छोड़कर इस प्रकरण को देखें तो इससे राम और दुर्गा जैसे देवी-देवताओं की भारतीय जनमानस में गहरी पैठ का प्रमाण तो मिलता ही है।
रामायण की मूल कथा यह है कि राम ने कैसे रावण का वध किया और धर्म की स्थापना की। किंतु इसके अनगिनत आख्यान हैं।
वाल्मीकि ने सबसे पहले रामायण की रचना की और ‘आदि कवि’ के रूप में जाने गए। बाद में इसकी अनगिनत अनुकृतियां हुईं। वाल्मीकि रामायण के कुछ अध्यायों में बीच-बीच में राम को अवतार बताया गया, लेकिन यहां उनका चित्रण एक महान राजकुमार के रूप में ही है। इसके कई शताब्दी बाद कंबन ने तमिल में रामकथा लिखी। वाल्मीकि रामायण दक्षिण भारत में छठी-सातवीं सदी में भी लोकप्रिय और पूज्य थी क्योंकि अल्वार (वैष्णव संत) इस कथा के आधार पर विष्णु की प्रशंसा में गीत गाते थे। यानी तब राम को अवतार मान लिया गया था। वाल्मीकि के प्रति कंबन आभार तो जताते हैं, लेकिन उनकी रामायण में राम को ईश्वर का दर्जा मिला हुआ है। वह यह भी कहते हैं कि राम के किसी भी कार्य के लिए कोई सफाई नहीं देंगे, क्योंकि वह भगवान हैं। जबकि वाल्मीकि राम के हर कार्य के लिए सफाई देते हैं क्योंकि उनके राम आदर्श पुरुष हैं।
तमिल में प्रेमलीला की सशक्त परंपरा भी है। संगम साहित्य में भरपूर रोमांस है। इसलिए कंबन की रामकथा में राम और सीता पहले एक-दूसरे से प्यार के बंधन में बंधते हैं। वह रावण के रूप एक एंटी-हीरो भी तैयार करते हैं, जिसमें आध्यात्मिक शक्ति के साथ शैतानी अहंकार है। फिर तमिल परंपरा के अनुरूप वह राम के व्यक्तित्व में प्रेम और साहस भी जोड़ देते हैं। इसके कई सदी बाद तुलसीदास ने राम को विष्णु के अवतार के रूप में प्रस्तुत किया। लेकिन उन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम की भूमिका में भी बनाए रखा। क्या आप जानते हैं कि अद्भुत रामायण में कहानी कौन सा नया मोड़ लेती है? जब राज्याभिषेक के बाद संत राम का यशोगान करते हैं, तो सीता हंस पड़ती हैं। जब उनसे हंसने का कारण पूछा जाता है तो वह राम से कहती हैं कि उन्होंने केवल दशानन का वध किया है, उसका भाई सहस्रानन अभी भी जीवित है। यह सुनते ही राम सहस्रानन पर हमला करते हैं, लेकिन वह भगवान की पूरी फौज को एक शर से अयोध्या वापस भेज देता है। वहां सिर्फ राम और सीता बचते हैं। राम अचेत हो जाते हैं और सीता काली का रूप धारण कर सहस्रानन का वध करती हैं।
विमूल सूरी ने प्राकृत में जैन रामायण पामाचरिऊ लिखी है। इसमें रावण का वध लक्ष्मण करते हैं, राम नहीं। राम का सिंहासन छीन लिया जाता है और रंक राम पत्नी सीता के साथ निर्वासन में जीते हैं। रावण सीता का अपहरण करता है और लक्ष्मण, सुग्रीव उन्हें वापस लाते हैं। इसके बाद लक्ष्मण रावण को मारते हैं और दोनों नरक जाते हैं, जबकि राम जैन संत बन जाते हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है। सीता साध्वी बन जाती हैं और स्वर्ग जाती हैं। बौद्ध रामायण दशरथ जातक में दशरथ की राजधानी बनारस है और कहानी बिल्कुल अलग है क्योंकि यहां रावण के साथ कोई युद्ध नहीं होता। कन्नड़ रूपांतर में तो सीता रावण की पुत्री हैं।
बांग्ला में कृतिवास ने लंका कांड में ‘अकालबोधन’ का अध्याय बड़ी खूबसूरती से जोड़ा। राम ने रावण के सभी दस सिरों को काट डाला। फिर भी रावण उनके निकट खड़ा रहा। तब राम ने अर्द्धचंद्र वाण से रावण के शरीर को ऊपर से नीचे तक दो बराबर हिस्सों में विभक्त कर दिया। किंतु ब्रह्मा के वरदान से रावण पुन: जीवित हो गया। रावण के तीरों से राम स्वयं बुरी तरह घायल हो गए, इसके बावजूद उन्होंने रावण का सिर सौ बार धड़ से अलग किया। किंतु कटा सर दोबारा ऐसे जुड़ जाता था, गोया कुछ हुआ ही न हो। रावण ने अंबिका (दुर्गा) की आराधना की, जिन्होंने उन्हें अभयदान दिया। देवी रावण के रथ पर सवार हो गईं, जिससे राम उद्वेलित हो गए। तब सभी देवी-देवताओं ने विष्णु से सलाह मांगी। उन्होंने राम को चंडी (दुर्गा) पूजा कर उनका आशीर्वाद लेने को कहा। राम ने मनोयोग से दुर्गा की आराधना की, लेकिन देवी प्रसन्न नहीं हुईं। तब विभीषण ने सुझाव दिया कि देवी पर 108 नीलकमल अर्पित किए जाएं।
राम ने हनुमान को देबीदाहा भेज कर नीलकमल मंगवाए। वही एकमात्र स्थान था, जहां यह मिलता था। हनुमान तो 108 नीलकमल ले आए, परंतु देवी ने उनमें से एक छुपा दिया। पूजा के मध्य में राम को अहसास हुआ कि एक नीलकमल कम है। आखिर उन्होंने 108वें पुष्प की जगह अपनी एक आंख निकालकर अर्पण करने का निर्णय किया, क्योंकि उनकी आंखें नीलकमल के समान थीं। जैसे ही वह आंख निकालने को हुए, वैसे ही देवी प्रकट हुईं और वरदान दिया कि रावण वध में वह मदद करेंगी। तब राम ने षष्ठी को पूजा प्रारंभ की, दुर्गा अष्टमी को प्रकट हुईं। अष्टमी और नवमी के मिलन बिंदु पर वह राम के तीर में प्रवेश कर गईं और दशमी को रावण का वध हुआ। कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की चर्चित कृति ‘राम की शक्ति पूजा’ में भी राम की इस आराधना का वर्णन है।
सौजन्य -सुधांशु रंजन