“झलक झोपडियों तक रुकती नही, झाँकती हड्डियाँ नजरों को चुभती नहीं
लटकती खाल का सवाल है, कंगाली के कितने कंकाल है?’’
अनगिनत ? शायद इस सवाल को सुनकर सबके जहन में जवाब यही आया होगा। कितने एक से हैं हमारे विचार, नही ? पर अफसोस हम सबकी सोच मिली भी वहाँ जहां हमारा एक सा ख्याल संयोग नही समस्या है। एक ऐसी समस्या जिसका समाधान अनिवार्य है, अन्यथा न जाने कितने ही मनुष्य कुपोषण के कारण जीते-जागते ‘कंकाल’ बनकर रह जाएंगे। स्वाभिक तौर पर यह पढकर आपके मन में ये जरुर आया होगा, कि कुपोषण कोई नया मुद्दा तो नही है, फिर आज इसकी चर्चा करने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी ? असल में यहीं तो मात खा जाते हैं हम इंसान- हम परिस्थिती की गंभीरता पर तभी गौर करते हैं जब उसके परिणामों का प्रभाव हमारे प्रयासों द्वारा बदल पाना भी संभव नही रह जाता। ‘कुपोषण’ एक ऐसी ही उभरती हुई समस्या है, क्यों आइए जानते हैं-
‘’कफन में दफ़न साँसो का हिसाब नही, चिताओं में चमडियों की राख नही
खुद मय्यतो के मलाल का सवाल है, कंगाली के कितने कंकाल है?’’
हमारे शरीर को काफी लम्बे वक्त तक संतुलित आहार प्राप्त नही होना ही साधारण शब्दों में कुपोषण है। दुर्भागय से इसकी परिभाषा जितनी आसान है इसका असर उतना ही घातक। सवाल है क्यों? आपको बता दें कि 2019 में छपि एक रिर्पोट के अनुसार, आईएमआरसी यानि इंडियन कॉउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने 2017 तक के दर्ज मामलों के आंकलन में यह पाया कि भारत में 68.2 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो कुपोषण के कारण, अपने जीवन के शुरवाती 5 साल भी पूरे नही कर पाते और बिना किसी अपराध के ही मौत का शिकार हो जाते हैं। वहीं, द स्टेट ऑफ द वल्डस चिल्ड्रन की 2019 में जारी कि गयी रिर्पोट की माने तो, साल 2018 में कुपोषण की वजह से देश के ऐसे 8.8 लाख बच्चों की मौत दर्ज की गयी है, जो 5 साल से भी कम आयु के थे। कुपोषण एक ऐसी बिमारी है जो अपने साथ कईं ओर रोगों को लेकर आती है। यह भी एक कारण है जो इस समस्या को और घातक बनाता है। घेंघा रोग, क्वाशियोरकर (प्रोटीन की कमी से), सूखा रोग यानि मरास्मस (प्रोटीन व कैलरी की कमी से) , रक्तहिनता (लौह तत्व की कमी से), बेरी-बेरी (विटामीन B 1 की कमी से), स्कर्वी (विटामीन C की कमी से),रिकेट्स (विटामीन D की कमी से) जैसे कईं अन्य रोग कुपोषण से जन्म लेते हैं। इतना ही नही, साल 2017 की वैक्ष्विक पोषण रिपोर्ट पर यदि हम एक नजर डाले तो पाएंगे कि हमारे देश में 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग की 51 ऐसी महिलाएं हैं जो एनिमिया से ग्रस्त हैं।
आपको बता दें, खुद प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह माना है कि देश के विकास और समृद्दि के लिए यह आवश्यक है कि देशवासियों को उचित पोषण मिले। 2018 से लेकर अबतक प्रधानमंत्री कईं बार कुपोषण को लेकर अपने विचार जनता के आगे रख चुके हैं। सिर्फ इतनी ही नही, 2018 में सरकार ने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय पोषण मिशन योजना को शुरु किया, जिसका लक्ष्य 10 करोड़ बच्चों और गर्भवती महिलाओं को योजना का लाभ पहुचांकर ये सुनिश्चित करना था कि उन्हे उचित पोषण प्राप्त हो। इस योजना के तहत – कम वजन का शिकर होने वाले बच्चे, गर्भवति महिलाओं व ऐसे परिवारों को रखा गया जिनकी आर्थिक स्थिती इतनी मजबूत नही है कि वे अपने बच्चों और गर्भवति महिलाओं को पोषित आहार उचित मात्रा में उपलब्ध करवा सकें। खास बात यह कि इस योजना का एक अहम उद्देश्य यह भी था कि- 2022 तक भारत में स्टंटिंग दर को 4 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत तक लाया जाएगा । हालाकि, कुछ आँकड़े यह सिद्द कर रहें हैं कि नतीजे का नक्शा वैसा निकलकर नही आया है जैसी उम्मीद जताई जा रही थी। देश मे अब भी गरीबी, भुखमरी, शिक्षा का अभाव, लैंगिक भेदभाव और दुषित पर्यावर्ण जैसी समस्याऐं अपनी जड़ें जमाई बैठी हैं जिन्हे कुपोषण का मुख्य कारण माना जाता है। बता दें , कि ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2020’ की रिपोर्ट में जारी आंकडे यह बतातें हैं कि 27.2 स्कोर के साथ भारत भूख के मामले में 107 देशों की लिस्ट में 94 स्थान पर आता है। उनके द्वारा इस स्थिती को ‘गंभीर’ कहा गया है। इतना ही नही ये रिपोर्ट यह भी कहती है, कि भारत में करीब 14 फीसदी लोग कुपोषण के शिकार हैं ।
"मजबुरियाँ मुकद्दर से दुखी हैं, आग पेट की बुझ चुकी है
ये दयनीय दशा ही सवाल है ,कंगाली के कितने कंकाल है?"
इन आंकड़ों को पढकर शायद अब आप यह अनुमान लगा सकें कि यह समस्या कितनी बड़ी है। स्वयं सोचिए, क्या यह संभव है कि आपकी गाड़ी बिना पेट्रोल-डीजल के चल सके? और गाड़ियाँ भी छोडीए, आपके आसपास कितनी ऐसी वस्तुऐं हैं जो बिना उर्जा के कार्य कर सकती हैं। अरेǃǃ यह विशाल प्रकृति जो खुद न जाने कितने ही जीवों की पोषक है, सुचारु रुप से कार्य करने मे असमर्थ हो जाती है जब इसके उर्जा स्रोत इससे छीन लिए जाते हैं। और कुपोषण का सबसे बडा कारण गरीबी-यह तो एक ऐसे चाबुक की तरह है जो देह की चमडी को चीरता हुआ भीतर की हड्डियों तक वार करने मे सक्षम है। वास्तव मे कुपोषण किसी महामारी से कम नही है और जरुरी है कि वक्त रहते इसकी चपेट से मासूस जिंदगियों को बचाया जाए।