फर्ज कीजिए आपका लड़का है, उसका तलाक हो चुका है या वह तलाक लेना चाहता है तो क्या आप उसे अपने घर से निकाल देते हैं? क्या आप उसको ये समझाते हैं कि बहू से एडजस्ट कर ले, हमारी नाक कट जाएगी अगर तूने उसे तलाक दिया या अगर तेरा तलाक हो गया तो दूसरे भाई-बहनों का क्या होगा? क्या आप उस पर समझौता करने का दबाव इस हद तक डालते हैं कि वह अपनी जान दे दे। आप अपनी छोड़िए, अपने आसपास या दूर तक नजर डालकर बताइए कि क्या आपने ऐसा कोई परिवार देखा है जिसमें माता पिता ने अपने लड़के से परिवार की इज्जत रखने की खातिर तलाक न लेकर एडजस्ट करने को कहा हो? शायद नहीं। अपनी औलाद से उसकी खुशी के खिलाफ समझौता करने को क्यों कहेगा कोई भला?
इसके उलट ये जरूर देखा होगा कि तलाक के बाद लड़के के लिए दूसरी शादी की बातें शुरू हो जाती हैं कि अभी हमारे लड़के की उम्र ही क्या है? शादी करवाओ इसकी, पूरी जिंदगी पड़ी है। है कि नहीं ऐसा? फिर लड़कियों को क्यों ये सब कहा जाता है? क्यों लड़कियां आयशा बन रही हैं? लास्ट कॉल रिकॉर्डिंग में आयशा बार-बार रोते हुए यह कहती रही कि अब और नहीं सहा जा रहा पापा। मैं मरने जा रही हूं। क्यों मरने की कगार पर खड़ी आयशा के पिता ये कहते हुए सुने गए कि मैं जालोर जाकर तेरे परिवार से सुलह करा दूंगा? सब सुलझ जाएगा, मैं सब सुलझा दूंगा।
हंसते हुए बनाया विडियो और फिर साबरमती में कूदकर आयशा ने दी जान
लड़की के माता पिता को यह समझने की कोशिश करनी होगी की उनकी तथाकथित इज्जत उनकी अपनी बेटी की जिंदगी और उसकी खुशी से ज्यादा बड़ी नहीं है। अगर कोई बेटी आयशा जैसा कोई कदम उठाती है या फिर दहेज लोभी ससुराल वाले उसकी हत्या कर देते हैं तो फिर सिर्फ लड़की का ही परिवार नहीं, पूरा देश उस घटना के खबर बनने पर सिहरता है, जैसे आज अहमदाबाद की आयशा के वायरल विडियो को देखकर हो रहा। और आज आयशा के जाने के बाद जो हो रहा है, यह यकीनन आयशा के घरवालों के लिए कोई सम्मान की बात शायद नहीं है। आयशा के आखिरी विडियो के वायरल होने के बाद हमने कुछ ऐसी महिलाओं से बात की, जिन्होंने हमें ये बताने की कोशिश की कि एक खराब शादी में जुल्म सहना या फिर अपनी जान दे देने से बेहतर है तलाक ले लेना। इसके लिए लड़की को सिर्फ चाहिए होता है तो अपने पैरंट्स और भाई बहनों का सपोर्ट।
माता पिता को हुआ गलती का अहसास
शादी के तीन साल बाद ही अपने पति को छोड़कर मायके आईं सुनेत्रा ने बताया कि तब उनके पास डेढ़ साल की एक बच्ची भी थी। अपने मां-बाप ने घर में रखने से मना कर दिया और वापस जाने को कहा। तब एक रिश्तेदार ने सुनेत्रा को शरण दी। चार महीने के अंदर सुनेत्रा एक कोर्स करके अपने पांव पर खड़ी हो गईं और उन चार महीनों में उनके अपने परिवार को भी अपनी गलती का अहसास हो गया और उन्होंने सुनेत्रा को घर बुला लिया। आज सुनेत्रा खुश हैं अपने मायके में, अपने माता-पिता का पूरा सपोर्ट है और वह खुद कमाकर अपना और अपनी बेटी का खर्च निकाल रही हैं। आयशा का विडियो देखकर चौंकीं सुनेत्रा पूछती हैं कि ससुराल वालों के जुल्म सहने के वक्त आयशा जैसी लड़कियां क्यों अकेली पड़ जाती हैं? बेटा बेटी एक समान का नारा लगा लगाकर बड़े हुए हम लोग अपनी बेटियों को शादी करके मरने के लिए क्यों छोड़ देते हैं। अब तो पुश्तैनी सम्पत्ति में भी लड़कियों को बराबर का हक कानून ने दे दिया है तो फिर ससुराल के प्रपंचों से परेशान होकर अपने माता-पिता के घर आई लड़की क्यों उसके अपने ही परिवार को बोझ लगने लगती है। वह उसे अपना लड़का मानकर ही क्यों एक्सेप्ट नहीं कर लेते। लड़के के तलाक के वक्त उसकी दूसरी शादी करने वाले पैरंट्स की नाक बेटी के तलाक के वक्त क्यों कटने लगती है? लड़की जॉब करती हो, सैलरी लाती हो, अपना गुजारा खुद कर सकती हो, फिर भी उसको अपने मां-बाप समझा बुझा कर वापस उसी जहन्नुम में भेजने की जिद क्यों पकड़ लेते हैं?
बदल गया था भाई-भाभी का रवैया
ऐसे ही पति और ससुराल वालों के जुल्मों से परेशान होकर तलाक ले चुकी निकिता सिंह बताती हैं कि पति से तलाक लेने के फैसले पर उनके मायके वालों ने उन्हें ऐसा करने पर रिश्ता तोड़ लेने तक को कह दिया। भाई और भाभी का रवैया पूरी तरह से बदल गया। निकिता कहती हैं कि यह अक्सर सुनने को मिलता है कि हमने पढ़ा लिखा दिया, शादी कर दी, दान दहेज में जो भी लड़की के हिस्से का था, उसे दे दिया, अब लड़की का मायके से क्या लेना देना? निकिता पूछती हैं कि क्या लड़के की शादी में मेरे पैरंट्स का खर्च कहीं कम हुआ था? भाई भी कमाता है तो मैं भी अच्छा कमा लेती हूं। माता-पिता के घर रहती तो घर खर्च में अपना सहयोग देती, लेकिन उन्होंने मुझे मायके से निकलने पर मजबूर कर दिया। मैं आज अपने 12 साल के बेटे के साथ किराए के घर में रहती हूं। ससुराल और मायके वालों के तानों से दूर आज मैं और मेरा बेटा खुश हैं। एक तो दहेज देकर लड़की के माता पिता पहली गलती करते हैं, उसके बाद ससुराल वालों के लगातार बढ़ते लालच को पूरा कर करके गलती की और फिर आखिरी गलती तब की जब उसके लिए अपने सपोर्ट के दरवाजे बंद कर दिए। आपकी अपनी ही बेटी के लिए यह बेरुखी लालची ससुराल वालों के इरादे और मजबूत करते हैं। वे जानते हैं कि आप लड़की को वापस लेंगे नहीं, लाचार लड़की या तो दहेज लाएगी या जुल्म सहेगी या फिर आयशा की तरह विडियो में सबको निर्दोष बताकर अपनी जिंदगी खत्म करेगी।
रेखा अग्रवाल
माता पिता ने हिम्मत दी, आज हैं जानी मानी वकील
ससुरालवालों और पति से मिली प्रताड़ना के बाद एक लड़की के लिए माता पिता का सपोर्ट कितना जरूरी होता है और उस सपोर्ट के बल बूते पर वह क्या ऊंचाइयां हासिल कर सकती है, उसकी जीती जागती मिसाल हैं दिल्ली हाइकोर्ट की सीनियर एडवोकेट रेखा अग्रवाल। वह बताती हैं, शादी के वक्त मैं सिर्फ बीए पास लड़की थी। शादी के तीन साल बाद ही 1985 में मैं ससुराल छोडकर अपने मायके आ गई थी। उस दौर में ससुराल छोड़ना और तलाक की बात करना आज के वक्त से भी ज्यादा टैबू विषय था। तब तलाक बहुत कम हुआ करते थे। मैं बहुत परेशान रहा करती थी और आत्महत्या तक की बात अपने घरवालों से कर चुकी थी। ऐसे वक्त में मेरे माता पिता ने मुझे समझाया कि तुम ऐसे व्यक्ति के लिए आंसू मत बहाओ, जिसने तुम्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया है। तुम अपने वजूद को खत्म नहीं कर सकती। मेरे माता पिता ने हिम्मत दी थी कि अपनी कीमत समझो और अपने पांव पर खड़ी होना सीखो। मैंने मायके आकर पढाई शुरू की, वकील बनी और आज अपनी पहचान मैंने समाज में बना ली है। ये सब मेरे पैरंट्स के सपोर्ट की वजह से है। रेखा देश की जानी मानी वकील हैं और इस तरह के कई केस अदालत में लड़ चुकी हैं। अपने अनुभवों के आधार पर उनका कहना है कि पुरुष प्रधान समाज में पुरानी सोच को बदलने की जरूरत है जिसमें सिखाया जाता है कि लड़की पराया धन होती है और मायके से उसकी डोली उठी है तो ससुराल से ही अर्थी उठनी चाहिए। इसी सोच को बचपन से लड़कियों में ठूंसा जाता है, जिस वजह से लड़कियां अपने ससुराल की समस्याओं को अपने घरवालों को बताने पर भी कभी कोई सपोर्ट हासिल नहीं कर पातीं। जो जगह बेटे को देते हैं वही जगह बेटी को देनी होगी। तलाक लेना कोई क्राइम नहीं है।
आपको भी समझना होगा
अगर आप लड़की के माता पिता हैं तो इन तीन किस्सों से शायद समझ पाए होंगे कि आपकी बेटी की जान से ज्यादा जरूरी कुछ नहीं। अपनी जान गंवा चुकी लड़कियों के पति तो देर सवेर दूसरी शादी कर लेंगे, लेकिन आपकी लड़की को वापस नहीं लाया जा सकेगा। इसका इलाज एक ही है, अपनी परेशान बेटी की सुनो, वो ससुराल छोड़कर आए तो उसका सपोर्ट सिस्टम बनो तभी दहेज के लोभियों को ये बात समझ आएगी कि आपकी लड़की कमजोर नहीं है, क्योंकि आप कमजोर नहीं हैं। उन्हें समझ आएगा कि उन्हें अब और दहेज नहीं मिलने वाला तो चुपचाप शांति से रहें या फिर तलाक लें। आपको समझने की जरूरत है कि तलाकशुदा लड़की, आयशा की तरह अधूरे सपने लेकर आत्महत्या करने वाली लड़की से हजार गुना बेहतर है।
सौजन्य - नमिता जोशी