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• Fri, 19 Jul 2024 1:29 pm IST


मंडेला का झूठ


साल 1952 की बात है। जोहानिसबर्ग में भेदभाव वाले कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक हुई। इसमें 29 फरवरी तक मांगें नहीं मानी जाने पर हड़ताल करने का निर्णय करते हुए एक पत्र तैयार किया गया। पत्र सरकार को सौंपा जाना था, जिसमें अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. जेम्स मोरोको के हस्ताक्षर की जरूरत थी। वह जोहानिसबर्ग से 120 मील दूर रहते थे। नेल्सन मंडेला के पास ड्राइविंग लाइसेंस था, इसलिए हस्ताक्षर कराने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई। रास्ते में उन्हें दो जगहों पर घृणा और अपमान का सामना करना पड़ा। किसी तरह वहां से निकले तो पेट्रोल खत्म हो गया। पैदल चले तो एक फार्म हाउस आया। वहां की मालकिन से पेट्रोल मांगा, उसने मना कर दिया और नफरत भरी नजरों से देखते हुए दरवाजा बंद कर लिया।

दो मील चलने के बाद दूसरा फार्म हाउस आया। इस बार अंग्रेजी में झूठ बोले, ‘मैं ड्राइवर हूं। मेरे मालिक की गाड़ी का पेट्रोल खत्म हो गया है। पेट्रोल की कीमत देने के लिए तैयार हूं। क्या पेट्रोल मिलेगा?’ इस बार उन्हें पेट्रोल मिल गया। वहां उन्हें नफरत जैसी कोई बात नहीं दिखी। डॉ. मोरोको के हस्ताक्षर के बाद सरकार को ज्ञापन सौंप दिया गया, लेकिन सरकार ने मांगें नहीं मानीं। हड़तालें हुईं, गिरफ्तारियां हुईं, सजा हुई।

लंबा वक्त गुजर गया, पर नेल्सन मंडेला को यह बात सताती रही कि वह झूठ नहीं बोलते तब भी उन्हें पेट्रोल मिल जाता। उस महिला में उन्हें घृणा नहीं, प्रेम नजर आया था। नेल्सन का जीवन प्रेम और घृणा से भरा रहा, लेकिन उन्होंने प्रेम का रास्ता चुना। उन्होंने मन, वचन और कर्म से गोरों से घृणा नहीं की क्योंकि उन्हें भी तो कुछ गोरों का प्रेम मिला था। वह कहते थे कि मनुष्य प्रेम और घृणा के साथ पैदा नहीं होता है। सब यहीं सिखाया जाता है, तो प्रेम ही क्यों न सीखें!

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स