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DevBhoomi Insider Desk
• Sat, 4 Jun 2022 4:38 pm IST


यूजर्स सेफ्टी से खिलवाड़ कर रही हैं ये कंपनियां


पिछले साल फेसबुक की व्हिसलब्लोअर फ्रांसेस हॉगेन ने एक धमाका किया। उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस को बताया, ‘इंस्टाग्राम को पता था कि वह बच्चों और किशोरों की मेंटल हेल्थ खराब कर रहा है।’ इंस्टाग्राम के मालिक मार्क जकरबर्ग हैं। फेसबुक (अब मेटा इंक) और वॉट्सऐप के भी।

हॉगेन ने जो कहा, उसके सबूत भी उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस के सामने पेश किए। ऐ कंपनी के अंदरूनी दस्तावेज थे। इनमें लिखा था कि जो लड़कियां सोशल मीडिया साइट का इस्तेमाल करती हैं, उनमें खुदकुशी की भावनाएं तो बढ़ती ही हैं, ईटिंग डिसऑर्डर भी बढ़ता है। इंस्टाग्राम जैसी बड़ी टेक्नॉजिकल कंपनियां यानी बिग टेक ने अपने प्लैटफॉर्म में ऐसे फीचर डाल रखे हैं, जिनसे यूजर्स को उनकी लत लग जाती है। यह उनके बिजनेस मॉडल का हिस्सा है और यह बात किसी से छिपी नहीं है।

इसी तरह 2019 में यह बात सामने आई थी कि फेसबुक पर बच्चे माता-पिता से छुपाकर गेम खेलने के लिए सैकड़ों या हजारों डॉलर खर्च कर रहे थे, और सोशल मीडिया कंपनी उससे मुनाफा बटोरती रहीं। बच्चों की ओर से ऐसे खर्च को माता-पिता की ओर से लौटाने की मांग करने की उसने अनदेखी की। साल 2018 में कंपनी ने भारी संख्या में यूजर्स के पर्सनल डेटा कैंब्रिज एनालिटिका को बेच दिए, वह भी बगैर किसी से इसकी इजाजत लिए। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में उसने वोटरों को गलत सूचनाएं देकर गुमराह भी किया। भारत में वॉट्सऐप और फेसबुक की न्यूज फीड का इस्तेमाल झूठ और अफवाह फैलाने के लिए हुआ, जिससे लिंचिंग की घटनाएं हुईं। कई बेगुनाह लोग मार तक दिए गए। इतने सब के बाद भी वे बेलगाम हैं।

शायद आप जानते हों कि फेसबुक और दूसरी बिग टेक कंपनियां यूजर्स का जो डेटा जुटाती हैं, उसे बेचकर ही वे कमाई करती हैं। वे यह नहीं बतातीं कि आपका कितना डेटा रोज इकट्ठा किया जा रहा है और उसे किसको और किस मकसद से बेचा जा रहा है। इन प्लैटफॉर्म्स से अक्सर यूजर्स के डेटा लीक भी होते आए हैं। सच तो यह है कि इन कंपनियों की यूजर्स सेफ्टी में कोई दिलचस्पी ही नहीं है, जबकि अपने प्लैटफॉर्म्स की सुरक्षा पर हर साल ये अरबों डॉलर खर्च करती हैं।

यूजर्स सिक्यॉरिटी का मामला उठने पर बिग टेक कंपनियां अक्सर ऊटपटांग दलीलें देती हैं। मसलन, वे इतनी बड़ी हैं, इसलिए कंटेंट मॉडरेशन नहीं किया जा सकता। लेकिन सच क्या है? फेसबुक की ही बात करें तो 2021 में उसे 39.4 अरब डॉलर का मुनाफा हुआ। फिर भी कंपनी ने 2016 के बाद हर साल यूजर्स सेफ्टी पर औसतन 2 अरब डॉलर ही खर्च किए। यूजर्स सेफ्टी पर इससे कुछ ही कम रकम पिछले तीन सालों में कंपनी को अमेरिका में जुर्माने और मुकदमों पर खर्च करना पड़ा है। अगर वह इस मद में अधिक पैसा खर्च करती तो वह जुर्माने और मुकदमों से तो बच ही सकती थी।

कंटेंट मॉडरेशन पर कंपनी खुद भी अपनी पोल खोल चुकी है। फेसबुक ने बताया कि 44 हजार लोग कंटेंट की निगरानी में लगे हैं, जबकि इस साल अप्रैल में कंपनी के मंथली एक्टिव यूजर्स की संख्या ढाई अरब से कुछ कम थी। इतने यूजर्स के लिए 44 हजार की संख्या बहुत कम है। एक और मसला यह है कि फेसबुक ने यह काम बाहरी कंपनियों को सौंपा हुआ है। इसलिए जो लोग यह काम करते हैं, उनकी सैलरी फेसबुक के एंप्लॉयी से बहुत कम होती है। 2019 में जहां फेसबुक में औसत सैलरी 2.40 लाख डॉलर थी, वहीं कंटेंट मॉडरेटर्स की 29 हजार डॉलर से कुछ कम। यूट्यूब और ट्विटर में भी कंटेंट मॉडरेशन का यही मॉडल है।

अभी तक का तजुर्बा यही बताता है कि बिना दबाव के बड़ी टेक्नॉलजी कंपनियां यूजर्स सेफ्टी को लेकर हरकत में नहीं आने वालीं। इन कंपनियों से यूजर्स के डेटा यूज पर पारदर्शिता की मांग करनी चाहिए। दूसरी बात यह है कि जिस तरह से बच्चों पर इन प्लैटफॉर्म्स का बुरा असर पड़ रहा है, उसे देखते हुए क्या सोशल मीडिया को जॉइन करने की कोई न्यूनतम उम्र तय की जानी चाहिए?

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स