Read in App


• Wed, 28 Feb 2024 11:57 am IST


क्यों न मिले ‘सब कुछ’?


हाल के वर्षों में अगर लड़कियां करियर की बुलंदियां छूती नजर आ रही हैं तो निश्चित रूप से उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ रही है। ज्यादातर मामलों में यह कीमत पर्सनल लाइफ की संतुष्टि से जुड़ी होती है। चिंता की बात है कि मौजूदा कानूनी ढांचा भी नए रास्ते अपनाने की हिम्मत करने वाली इन लड़कियों की ताकत बढ़ाने के बजाय कई मामलों में उनके मनोबल को कम करता नजर आता है। इसका अच्छा उदाहरण हैं सरोगेसी से जुड़े कानून जो सिंगल विमिन को सरोगेसी की इजाजत नहीं देते।

हालांकि इस बात को रेखांकित करने की जरूरत है कि सरोगेसी रेग्युलेशन एक्ट 2021 के पीछे इरादा अच्छा है। पिछले कुछ वर्षों में देश के कुछ हिस्सों में किराये की कोख का अवैध धंधा जिस तरह से फलता-फूलता जा रहा था, उस पर रोक लगाना जरूरी था। लेकिन फिर भी इस कानून से जुड़े कुछ पहलू न सिर्फ गौर करने लायक हैं बल्कि पुनर्विचार की भी मांग करते हैं। उदाहरण के लिए यह कानून शादीशुदा ही नहीं, तलाक ले चुकी सिंगल महिलाओं या विधवा हो चुकी महिलाओं को भी सरोगेसी की इजाजत देता है, पर शादी न करने वाली लड़कियों के लिए रास्ता बंद कर देता है। सवाल है कि मां बनने की काबिलियत पर इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि किसी महिला की अतीत में शादी हुई है या नहीं?

दिलचस्प है कि 44 साल की एक सिंगल महिला जब सरोगेसी के जरिए मां बनने की इजाजत मांगने सुप्रीम कोर्ट के पास गईं तो 5 फरवरी को आए फैसले में उनकी अर्जी ठुकरा दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले में टिप्पणी दी कि ‘आपको जिंदगी में सब कुछ नहीं मिलता।’ कोर्ट ने यह भी कहा कि परिवार संस्था की रक्षा करना उनका दायित्व है।

‘सब कुछ नहीं मिलता’ क्या दूसरे शब्दों में उन्हीं कीमतों को सही ठहराने की जानी अनजानी कोशिश नहीं है जो करियर संबंधी एंबिशन को पहले नंबर पर रखने वाली लड़कियों को चुकानी पड़ती है? समझने की जरूरत है कि परिवार एक पारंपरिक और सामाजिक संस्था है, इसलिए समाज अगर उसकी चिंता करता है तो वह स्वाभाविक है। लेकिन कम से कम कानून और अदालतों को शादी या परिवार के बजाय नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों और उनकी गरिमा की ज्यादा चिंता करनी चाहिए।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स