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DevBhoomi Insider Desk
• Mon, 31 Oct 2022 5:40 pm IST


कांग्रेस, AAP में चल रही अलग ही लड़ाई


गुजरात विधानसभा चुनाव सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए काफी अहम हैं। खुद पीएम नरेंद्र मोदी और होम मिनिस्टर अमित शाह वहीं से आते हैं। लेकिन अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भी इस चुनाव को खुद के लिए मेक या ब्रेक चुनाव बना दिया है। साल की शुरुआत में पंजाब में मिली बड़ी जीत से पार्टी के हौसले बढ़े हुए हैं। गुजरात में अब तक मिले रेस्पॉन्स से भी पार्टीजन उत्साहित हैं। वैसे, पिछले कुछ दशकों से राज्य में कांग्रेस ही मुख्य विपक्षी पार्टी रही है। मुख्य विपक्षी दल के स्पेस पर अपना हक बनाए रखने के लिए गुजरात में बेहतर प्रदर्शन करना अब कांग्रेस के लिए विकल्प नहीं, बल्कि मजबूरी है। आम आदमी पार्टी अगर यहां कांग्रेस के बराबर प्रदर्शन करने में सफल हो जाती है तो पार्टी की सेहत पर इसका बहुत बुरा असर पड़ सकता है। यही नहीं, गुजरात चुनाव का परिणाम यह भी तय करेगा कि देश में विपक्षी राजनीति की भविष्य में धुरी क्या होगी। इन परिणामों का सीधा असर 2024 आम चुनाव से पहले विपक्षी एकता के स्वरूप पर भी पड़ेगा।

पिछले कुछ सालों से कांग्रेस ने अपना सबसे खराब सियासी दौर देखा है। आज की तारीख में अपने दम पर सिर्फ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसकी सरकार है, जहां अगले साल चुनाव होने हैं। पार्टी के लिए फिक्र की बात यह भी है कि जिन राज्यों में वह सत्ता से बाहर हुई, वहां उसकी वापसी की राह बेहद कठिन रही है। अगर गुजरात की बात करें तो मुख्य विपक्षी दल रहकर भी वह बीजेपी के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी को नहीं भुना पा रही। हां, 2017 में वह जीत के बेहद करीब आ गई थी, लेकिन फिर भी बीजेपी अपनी सत्ता बचाए रखने में सफल रही।

कांग्रेस के सामने है दोहरी चुनौती
दूसरा ट्रेंड यह रहा है कि जिस-जिस राज्य में बतौर विपक्षी दल कांग्रेस को बीस फीसदी से कम वोट मिले, वहां उसने मुख्य विपक्षी दल का दर्जा गंवा दिया। किसी अन्य क्षेत्रीय दल या बीजेपी को यह स्पेस मिल गया। दिल्ली, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में ऐसा ही हुआ। गुजरात में पार्टी को इन दोनों ट्रेंड का भय है। अभी राज्य में जीत से अधिक पार्टी की चिंता और चुनौती खुद को कम से कम दूसरे स्थान पर मजबूती से बनाए रखने की है। पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी के हाथों सत्ता गंवाने के बाद अब और किसी राज्य में सत्ता या मुख्य विपक्षी दल का स्पेस उसके हाथों गंवाने का मतलब पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका हो सकता है। इसके परिणाम दूरगामी होंगे।

हालांकि पार्टी नेता इन बातों को कोरी कल्पना मानते हैं और कहते हैं कि गुजरात में वही बीजेपी को टक्कर देंगे। उनके मुताबिक अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का शोर ही अधिक है। कांग्रेस नेताओं का यह भी दावा है कि गुजरात में आम आदमी पार्टी शहरी इलाकों में बीजेपी के अधिक वोट काटेगी, इसलिए कांग्रेस को चिंता करने की जरूरत नहीं है। मगर पिछले दिनों तो कांग्रेस पर गुजरात में पूरी ताकत से चुनाव नहीं लड़ने और चुनौती को हल्के में लेने के आरोप भी लगे। इस पर पार्टी का तर्क है कि वह एक खास रणनीति के तहत राज्य में जमीन से जुड़कर काम कर रही है, जिसका असर चुनावी नतीजे में दिखेगा। लेकिन अगर कांग्रेस आप से पिछड़ गई तो अभी जिन राज्यों में खुद को मुख्य विपक्ष के रूप में पेश कर रही है, वहां भी आम आदमी पार्टी आक्रामक रूप से आगे बढ़ेगी। पार्टी गोवा, उत्तराखंड जैसे राज्यों में पहले ही सक्रियता दिखा चुकी है। अगले साल वह पूरी ताकत से मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी है। यही कारण है कि गुजरात विधानसभा चुनाव सियासी तौर पर कांग्रेस के लिए बेहद अहम है। देश में मुख्य विपक्षी स्पेस बनाए रखने के लिए भी उसे गुजरात में आम आदमी पार्टी से बहुत बेहतर करने की चुनौती होगी।

उलटफेर करने का दावा
वहीं अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने गुजरात में पूरी ताकत झोंक दी है, तमाम संसाधन लगा दिए हैं। अब तक आए तमाम सर्वे में भले आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर है, लेकिन पार्टी बेहतर वोट शेयर लाती दिख रही है। आम आदमी पार्टी इस बार गुजरात में खुद को एक बड़ी ताकत के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य लेकर चल रही है। अभी तक अरविंद केजरीवाल 2024 की विपक्षी एकता की कोशिशों से खुद को अलग रखते रहे हैं। दरअसल, गुजरात चुनाव परिणाम के बाद अपने सियासी कैपिटल को आंकने के बाद ही वह इस प्रक्रिया में अपनी हिस्सेदारी पर बात कर सकते हैं। राज्य में जिस स्तर पर आम आदमी पार्टी ने अपना दांव लगाया है, उससे उनकी राष्ट्रीय आकांक्षाएं भी तय होंगी। पिछले कुछ महीनों में, खासकर पंजाब चुनाव के बाद से अरविंद केजरीवाल की पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति की हसरत फिर से सामने आई है। पार्टी अब पिछली गलतियों से सीख लेकर आगे बढ़ने की रणनीति पर चलती दिख रही है। उसने दिल्ली मॉडल ऑफ गवर्नेंस पर फोकस किया और अपने लिए नया नैरेटिव बनाने के लिए स्कूल-स्वास्थ्य की ब्रैंडिंग की। अब केजरीवाल जिन नए राज्यों में विस्तार करने जाते हैं, वहां दिल्ली मॉडल ऑफ गवर्नेंस का दावा करते हैं- जिसमें सस्ती बिजली और बेहतर शिक्षा देने की बात होती है। अब इसमें पंजाब मॉडल ऑफ गवर्नेंस को भी जोड़ रहे हैं। लेकिन गुजरात में अगर पार्टी उम्मीद के हिसाब से प्रदर्शन करने में सफल नहीं रही, तो उसे आगे की राह में झटका लग सकता है। गुजरात चुनाव के साथ पार्टी के सामने दिल्ली नगर निगम का चुनाव भी सामने है, जहां वह इस बार हारी तो अपने ही गढ़ में सवालों के घेरे में आ सकती है। कुल मिलाकर गुजरात चुनाव सिर्फ एक राज्य का सामान्य चुनाव नहीं, विपक्षी स्पेस पर हक जताने का सेमीफाइनल भी होगा।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स