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• Fri, 22 Dec 2023 12:22 pm IST


क्रिसमस के केक


डॉ. सखी जॉन 1994 में केरल से दिल्ली आए। तब वह सेंट स्टीफंस अस्पताल कैंपस में रहा करते थे। वह हरेक क्रिसमस पर यमुना बाजार और तीस हजारी के आसपास की स्लम बस्तियों में रहने वाले बच्चों को केक बांटते और उनके साथ कुछ वक्त गुजारते। कुछ साल पहले डॉ. जॉन जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी में पढ़ाने लगे तो बारापुला फ्लाईओवर के नीचे रहने वाले परिवारों में केक बांटना शुरू कर दिया। वह केक के साथ बच्चों को कॉपी-पेंसिल भी बांटते हैं। उनकी बच्चों में जान बसती है। आपको राजधानी में इस तरह के दर्जनों फरिश्ते मिलेंगे, जो क्रिसमस केक अपने या अपने करीबियों के लिए ही नहीं बनवाते या खरीदते। कनॉट प्लेस में डी. मिनशन शूज शोरूम चलाने वाले जॉर्ज च्यू भी क्रिसमस से पहले ही केक पहाड़गंज की किसी बेकरी या फिर कनॉट प्लेस के वैंगर्स से खरीदकर गिरिजाघरों के बाहर बैठे दीन-हीन लोगों में बांटते हैं। उनसे पहले उनके पेरेंट्स भी यही करते थे। उन्हें उम्मीद है कि उनके बच्चे परिवार की केक बांटने की परंपरा को जारी रखेंगे। जॉर्ज का संबंध राजधानी की चीनी बिरादरी से है।

इस बीच आप सिविल लाइंस मेट्रो स्टेशन पर उतरने के बाद दिल्ली के उप-राज्यपाल के सरकारी आवास राज निवास के पास दिल्ली बदर्स हाउस की 1925 में बनी बिल्डिंग में पहुंचते हैं। यहां से केक, रस्क, पापे, फेनस, पेटिज वगैरह मेहनतकशों के मोहल्लों और बच्चों में बांटे जाने लगे हैं। दिल्ली ब्रदर्स हाउस में रहते हैं अविवाहित पादरी। देश में अविवाहित पादरियों का एकमात्र आशियाना यही है। यहां रहने वाले पादरी क्रिसमस पर दिल खोलकर स्वादिष्ट केक उन्हें खिलाते हैं, जिनका कोई नहीं है। कुछ साल पहले फादर इयान वेदरवेल भी वहां रहते थे। उनकी अगुआई में ही केक और दूसरे सामान बस्तियों के बच्चों को दिए जाते। वह ब्रिटेन से 1951 में दिल्ली आ गए थे। फादर इयान वेदरवेल ने फिर अपना शेष जीवन हाशिये पर धकेल दिए लोगों के हक में काम करने में लगा दिया।

उधर, राजधानी के बहुत सारे पुराने ईसाई परिवार ईस्ट दिल्ली की बेकरीज से केक, रस्क, पापे वगैरह खरीदकर वितरित करने भी लगे हैं। राजधानी की सबसे पुरानी क्रिश्चन बस्ती तुर्कमान गेट पर है। यहां रहने वाले क्रिश्चन क्रिसमस पर मॉडल टाउन, दरियागंज, सब्जी मंडी आदि की बेकरीज से केक बनवाते हैं। ये बेकरीज आधी सदी से भी पुरानी हैं। दिल्ली के मशहूर इतिहासकार आर. वी स्मिथ क्रिसमस पर मायापुरी में केक के साथ-साथ मफिन, कुकीज, पिज्जा, काठी रोल, हॉटडॉग वगैरह भी बांटा करते थे। वह न्यू राजेंद्र नगर के शंकर रोड में 1950 के आसपास खुली ग्रैंड बेकरीज से सामान खरीदते थे। यह बेकरी अब बंद हो गई है। इससे क्रिसमस केक डिप्लोमैट भी बनवाते थे। वक्त मिले तो क्रिसमस पर कश्मीरी गेट स्थित सेंट जेम्स चर्च का चक्कर लगा लें। 1836 में बने दिल्ली के इस सबसे पुराने चर्च में क्रिसमस पर प्रेयर के लिए आने वाले एंग्लो इंडियन परिवार चर्च के बाहर बैठे लोगों को खुशी-खुशी केक खिला रहे होते हैं।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स