पिछले हफ्ते अल सल्वाडोर में एक फुटबॉल मैच के दौरान मची भगदड़ में 12 लोग कुचलकर मारे गए और तकरीबन 500 घायल हो गए। ऐसे ही पिछले महीने रामनवमी के दिन इंदौर के बेलेश्वर महादेव मंदिर में मची भगदड़ में 35 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। दुनिया भर में आए दिन कहीं न कहीं भगदड़ मचती रहती है। पिछले दिनों वैज्ञानिकों ने 1900 से लेकर 2019 के बीच मची कुल 281 भगदड़ का विश्लेषण किया। गंभीर बात यह है कि दुनिया भर में जितनी भी भगदड़ मचती है, भारत उसमें नंबर एक पर है।
क्या रहे कारण
जापान की तोक्यो यूनिवर्सिटी और ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी का यह शोध सेफ्टी साइंस जर्नल में आया है। इसमें भगदड़ के कारणों का विश्लेषण किया गया।
विश्लेषण में कुल 46 घटनाओं और इससे जुड़े 24 कारकों को शामिल किया गया। जो परिणाम आए, उसके लिए 7 कारणों को भगदड़ का जिम्मेदार ठहराया गया।
इनमें दर्शकों का मूड, उत्पाती लोगों का समूह, हताश भीड़, असंतुलित लोगों का जमावड़ा, घटनास्थल पर ज्वलनशील-विस्फोटक पदार्थ, स्टेडियम में आवाजाही और समय विशेष थे।
शोध में कहा गया कि जहां दर्शक कार्यक्रम से सीधे जुड़ते हैं, वहां भगदड़ का जोखिम ज्यादा रहता है। ऐसी जगहों पर सुरक्षा की संभावना 86 फीसदी से घटकर मात्र 31 फीसदी रह जाती है।
आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में भगदड़ की घटनाओं के पीछे मुख्य वजह यही है कि सुरक्षा संबंधी कदम पुख्ता रूप से नहीं उठाए गए।
शोध में पता चला कि वर्ष 1900 से लेकर 1999 तक हर साल ऐसी तीन घटनाएं होती थीं, मगर उसके बाद इनकी संख्या बढ़कर 12 हो गई।
1902 से 2000 के बीच दुनिया के बड़े स्टेडियमों में 23 मामले भगदड़ के हुए हैं। इनमें मरने वालों की संख्या 1380 है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि इनके आयोजक जोखिम के कारकों पर विशेष ध्यान दें।
हजारों मौत
शोध में शामिल रहे ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के डॉ. मिलाद हागानी के मुताबिक पिछले 20 साल में 8,000 से ज्यादा लोगों की जान भगदड़ में गई है तो 15,000 से अधिक लोग घायल हुए हैं। डॉ. हागानी के मुताबिक वक्त के साथ खेल आयोजनों में दुर्घटनाएं कम हुई हैं, मगर धार्मिक आयोजनों में यह बढ़ी है। बीते 30 साल में खेल आयोजनों में अलग से सुरक्षा के जो इंतजाम हुए हैं, उसके चलते उनमें भगदड़ कम मची है। वहीं तोक्यो यूनिवर्सिटी के प्रो. क्लाउडियो फेलिचियानी के मुताबिक भारत में भगदड़ इसलिए मचती है क्योंकि यहां शहर की ओर होने वाले पलायन के लिए आधारभूत सुविधाएं नहीं हैं।
शोध में बताया है कि वर्ष 2000 से 2019 के बीच दुनिया भर में भगदड़ के जितने भी हादसे हुए, उनमें से तकरीबन 70 फीसदी अकेले भारत में ही हुए और तकरीबन ये सारे धार्मिक आयोजन थे।
भारत में भगदड़ से होने वाली अधिकतर घटनाएं नदी, तालाब, कुंड या पानी के किसी स्रोत के किनारे हुए।
इसके अलावा पुलों, बस और रेलवे स्टेशनों पर भी भगदड़ की घटनाओं में लोगों की जान गई।
शोध में कहा गया है कि भारत में समस्या वित्तीय संसाधनों की कमी नजर आती है। ऐसा लगता है कि सरकार जानती है कि कुछ करना है, मगर उसके पास जरूरी संसाधन और तकनीक नहीं हैं।
गंभीरता जरूरी
भगदड़ ना मचे और इसमें किसी की जान ना जाए, इसके लिए नैशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने 2014 में कुछ सुझाव दिए थे। इनके तहत लोगों को ट्रेनिंग देने और पुलिस-प्रशासन को स्थानीय कॉलेज और यूनिवर्सिटी के संपर्क में रहने की सलाह दी गई थी। यह भी कहा गया था कि जैसे आईआईएम अहमदाबाद ने तिरुपति मंदिर की व्यवस्था तैयार की थी, वैसी ही केस स्टडी की जानी चाहिए। इस रिपोर्ट के आने के बाद भी भारत भगदड़ से लगातार जूझ रहा है तो क्या यह माना जाए कि सरकारें और प्रशासन इस विकट समस्या को लेकर उतने गंभीर नहीं, जितना उन्हें होना चाहिए?
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स