अवधी और भोजपुरी के बारे में कहते हैं कि दोनों एक ही मां की दो संतानें हैं। दोनों ही भाषाओं के बहुत से शब्द एक-दूसरे के यहां पाए जाते हैं। इन्हीं में से एक है भकचोन्हर। यह शब्द बहुत सारे लोगों ने 2021 में तब सुना होगा, जब लालू प्रसाद यादव ने बिहार कांग्रेस अध्यक्ष के लिए इसका प्रयोग किया था। उनका यह शब्द बोलना था कि बहुत से लोग बुरा मान गए। उनका मानना था कि यह अपशब्द है। लेकिन भकचोन्हर कोई अपशब्द नहीं है। यह लोक का ऐसा शब्द है, जिसके लिए इंग्लिश, हिंदी और उर्दू में भी कोई सही समानार्थी नहीं है। हम जानते हैं कि जब आंखों पर तेज रोशनी पड़ती है तो कुछ देर के लिए वे चौंधिया जाती हैं। इसी चौंधियाने से बना है चोन्हर। यानी ऐसा शख्स, जिस पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा है कि उसे दिखना बंद हो गया है। लेकिन जब इसी घबराहट, आश्चर्य और आवेश में आकर वह मूर्खतापूर्ण हरकतें करने लगता है तो लोक चौंधियाने के आगे भक लगाकर उसे भकचोन्हर बना देता है।
मतलब ऐसा मूर्ख, जिसे देश, काल, परिस्थिति, विषय आदि का कोई ज्ञान नहीं है, लेकिन लगातार अल्ल-बल्ल किए जा रहा है। कोई कह सकता है कि मूर्ख को सिर्फ महामूर्ख कहकर ही काम चलाया जा सकता है। काम तो चलाया जा सकता है, लेकिन लोकभाषा में कामचलाऊ काम नहीं होता। लोक हमेशा शब्दों पर ऐसे वजन रख देता है कि सालों-साल उसे कोई हिला भी न पाए। लोक जानता है कि मूर्ख तो बदलेगा नहीं, लेकिन किसी चीज से प्रभावित होकर बनने वाले भकचोन्हर से उसे बदलने की आशा होती है। इसलिए वह भकचोन्हर बोलता है, इस आस में कि एक दिन उसे सब कुछ साफ-साफ दिखने लगे।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स