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• Fri, 12 Mar 2021 4:34 pm IST


दांडी मार्च... एक ऐसी यात्रा जिसने लिख दी बदलाव की गाथा


भारत के इतिहास में महात्मा गांधी की एक यात्रा ने बदलाव की ऐसी बयार चलाई की उसने पूरे भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध जन संघर्ष का व्यापक आंदोलन खड़ा कर दिया। उन्होंने इस यात्रा से बता दिया कि किस प्रकार किसी को झुकने या मजबूर करने के लिए जन आंदोलन खड़ा किया जा सकता है। यह वाकया भारत में अंग्रेजों के शासन के समय का है। 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने नमक विरोधी कानून के विरोध में दांडी मार्च अर्थात् दांडी यात्रा निकाली थी। यह यात्रा अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गांव दांडी तक 78 व्यक्तियों के साथ पैदल निकाली गई। इसे नमक मार्च और दांडी सत्याग्रह भी कहा जाता है। यह अंग्रेजों द्वारा लागू नमक कानून के विरुद्ध सविनय कानून को भंग करने का कार्यक्रम था। अंग्रेजी शासन में नमक का उत्पादन और विक्रय करने पर भारी कर लगा दिया था। नमक जीवन के लिए आवश्यक वस्तु होने से इस कर को हटाने के लिये गांधी जी ने यह सत्याग्रह चलाया।

दांडी तक की 241 मील की दूरी तय करने में उन्हें 24 दिन लगे और इस यात्रा में पूरे रास्ते हजारों लोग जुड़ते चले गए। गांधी जी ने 6 अप्रैल, 1930 को कच्छ भूमि में समुद्रतल से एक मुट्ठी नमक उठाया था। इस मुट्ठीभर नमक से गांधी जी ने अंग्रेजी हुकूमत को जितना सशक्त संदेश दिया था, उतना मजबूत संदेश शायद शब्दों से नहीं दिया जा सकता था। कानून भंग करने के बाद सत्याग्रहियों ने अंग्रेजों की लाठियाँ खाई थीं परंतु पीछे नहीं मुड़े थे। आंदोलन में सी. राजगोपालचारी, पंडित नेहरू आदि नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। ये आंदोलन पूरे एक साल तक चला और 1931 को गांधी-इर्विन के बीच हुए समझौते के साथ खत्म हो गया। इसी आन्दोलन से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इस आन्दोलन ने संपूर्ण देश में अंग्रेजों के खिलाफ व्यापक जनसंघर्ष को जन्म दिया था

 

सौजन्य -  डॉ. प्रभात कुमार सिंघल