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• Tue, 5 Mar 2024 10:53 am IST


पूतिन की फौज से कैसे भिड़े आम यूक्रेनी


‘Our Enemies Will Vanish,’ हाल में आई इस किताब में यूक्रेन युद्ध के शुरुआती दौर का जिक्र है। इसे लिखने वाले हैं यारोस्लाव ट्रोफिमोव, जिन्होंने अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल के लिए इस युद्ध की रिपोर्टिंग की है। यारोस्लाव का जन्म यूक्रेन में हुआ था। उनकी यह किताब हमें इस युद्ध के कई अनजाने पहलुओं से वाकिफ कराती है।

नहीं दिख रहा अंत : यह किताब बताती है कि चंद रोज के अंदर यूक्रेन पर कब्जे का रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन का प्लान क्यों कामयाब नहीं हुआ। इस किताब के बारे में आज बात करना इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि यह युद्ध अब तीसरे साल में प्रवेश कर चुका है और अभी भी इसका कोई अंत नहीं दिख रहा।


रूस का पलड़ा भारी : आज युद्ध में रूस का पलड़ा भारी है। आव्दीवका शहर पर हाल ही में उसने कब्जा किया है। यूक्रेन के लिए अब तक अमेरिका सबसे बड़ा मददगार रहा है, लेकिन इधर रिपब्लिकन पार्टी ने यूक्रेन को अरबों डॉलर की मदद रोक रखी है। इससे यूक्रेन के पास हथियारों की कमी का खतरा पैदा हो गया है। इससे यूक्रेनियों के मनोबल पर बुरा असर पड़ रहा है।

साहस को सलाम : यारोस्लाव बताते हैं कि युद्ध के शुरुआती दौर में यूक्रेन के लोगों ने चतुराई और साहस से कैसे रूसी हमले को नाकाम किया। मारियूपोल में रूसी सैनिकों से यूक्रेन के जो फौजी मुकाबला कर रहे थे, कैसे उन्हें मदद पहुंचाने के लिए यूक्रेन के हेलिकॉप्टर पायलटों ने जान जोखिम में डाली। सिर्फ तीन यूक्रेनी सैनिकों ने रेडियो सेट पर लगातार बात करके किस तरह से रूसी मिलिट्री इंटेलिजेंस को चकमा दिया। तीन सैनिक यह भ्रम पैदा करने में कामयाब रहे कि वे एक बड़े फौजी दस्ते का हिस्सा हैं।

पूतिन का प्लान : यारोस्लाव युद्ध को लेकर पूतिन के प्लान के बारे में भी लिखते हैं। पूतिन ने सोचा था कि यूक्रेन की राजधानी कीव पर चंद रोज में रूस का कब्जा हो जाएगा। इसके बाद वोलोदिमीर जेलेंस्की की हत्या कर दी जाएगी या उन्हें देश छोड़कर भागने को मजबूर किया जाएगा। फिर पूतिन उनकी जगह अपने पिट्ठू विक्टोर मेदवेदचुक को यूक्रेन का राष्ट्रपति बना देंगे और इस तरह से यूक्रेन की सत्ता उनके हाथों में आ जाएगी।

आम लोगों की बहादुरी : लेकिन यूक्रेन के लोगों के साहस ने पूतिन की योजना नाकाम कर दी, जिसका उन्हें अंदाजा नहीं था। बड़ी संख्या में यूक्रेन की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लोग फौज में भर्ती हुए। वॉलंटियरों ने भी रूसी फौज से मुकाबले में साथ दिया। उनकी टीम और यूक्रेन की स्पेशल फोर्सेज ने होस्टोमेल एयरपोर्ट पर रूस के कमांडो को उतरने नहीं दिया। रूस ने हजारों की संख्या में इन लोगों को एयरपोर्ट पर उतारने की कोशिश की ताकि कीव पर जल्द कब्जा किया जा सके।

वॉलंटियरों का कमाल : यारोस्लाव लिखते हैं कि अगर ये कमांडो वहां उतर जाते तो कीव यूक्रेन के हाथ से निकल जाता। खारकीव के बाहर ओखत्रय्का में यूक्रेनी वॉलंटियरों ने रूसी टैंकों पर जबरदस्त हमला बोला। दिलचस्प यह है कि इसके लिए रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड चलाने से पहले उन्हें इंस्ट्रक्शन मैनुअल पढ़ना पड़ा क्योंकि उन्हें यह काम नहीं आता था।

जेलेंस्की की लीडरशिप : युद्ध की शुरुआत में रूस ने यह प्रचार किया कि जेलेंस्की देश छोड़कर भाग गए हैं, लेकिन सच यह है कि यूक्रेनी राष्ट्रपति ने देश छोड़ने से इनकार कर दिया। उन्होंने यूक्रेन की जनता से रूस के खिलाफ खड़े होने की अपील की। इसके साथ उन्होंने पश्चिमी देशों को यूक्रेन की मदद के लिए मनाना शुरू किया। दरअसल, कई पश्चिमी देशों के लीडरों को भी लगा था कि रूस का कुछ ही दिनों में यूक्रेन पर कब्जा हो जाएगा। लेकिन जब उन्होंने यूक्रेन की फौज और वहां के लोगों की बहादुरी देखी तो वे भी मदद के लिए आगे आए।

अफसोस की बात है कि यूक्रेन ने युद्ध में जो बढ़त बनाई थी, वह अब उसके हाथ से निकल रही है। पश्चिमी देशों में इस युद्ध को लेकर एक ऊब दिख रही है। उन्हें लगता है कि यूक्रेन किसी भी सूरत में इस जंग को नहीं जीत पाएगा। इसलिए उसे शांति की पहल करनी चाहिए। डॉनल्ड ट्रंप कह रहे हैं कि वह 24 घंटे में दोनों पक्षों के बीच सुलह करा सकते हैं। कुछ अन्य पश्चिमी देशों को भी लगता है कि यूक्रेन में उनका कुछ दांव पर नहीं लगा है। यह सोच ठीक नहीं है। अगर यूक्रेन को रूस की शर्तों पर समझौता करना पड़ा तो पूतिन का हौसला और बढ़ेगा।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स