मोदी जी वास्तव में कॉमन मैन के नेता हैं. इस आत्मविश्वास से बात करते हैं कि शंका करने का प्रश्न ही नहीं उठता. जहां भी जाते हैं उसी के अनुसार कपड़े ही नहीं, दो चार जुमले भी फेंकते हैं. कभी चायवाले तो कभी चौकीदार बनकर बड़े वोट बैंक से सीधे रिश्ता बना लिया. इसी तरह बड़ी चतुराई से नए शब्द नए नारे बनाते हैं कि अर्थ, शब्द निर्माण के नियम और तर्क सब मुंह देखते रह जाते हैं. किस चतुराई से जन औषधि को ‘पीएमजय’ बना दिया. इससे औषधि का कहीं पता नहीं चलता बस, पी एम की ही जय. और इससे भी ऊपर प्रधानमंत्री मोदी जी जय सुनाई देता है.
आज तोताराम गदगद था, बोला- देखा, मोदी जी का फाइनल टच. दो भाषाओं के दो शब्दों के क्या कॉकटेल बनाया है ? एक ही झटके में ‘योगी’ को ‘उपयोगी’ बना दिया. मतलब शेष कोई भी किसी काम का नहीं.
हमने कहा- हमारे हिसाब से तो यह उनका अवमूल्यन है. वैसे ही हो गया जैसे ‘पत्नी’ को कोई ‘उपपत्नी’ कहे. उपपत्नी एक अवैध और हीन शब्द है.
बोला- लेकिन उपपत्नी का आकर्षण बहुत जबरदस्त होता है. उसकी आवभगत भी ज्यादा होती है.पत्नी उसके नाम को झींकती रहती है. इसे सौतन (सपत्नी ) भी कहते हैं. ‘मोरा साजन सौतन घर जाए…’ मोदी जी ने रोमन के दो अक्षरों यू और पी से ‘उप’ बना लिया और योगी तो हैं ही. बन गया ‘उपयोगी’.
हमने कहा- लेकिन ‘योगी’ बहुत बड़ी और ऊँची चीज होती है,
बोला- मास्टर, कहीं तू फिर ‘ऊंची चीज’ किसी अन्यथा अर्थ में तो नहीं कह रहा है ?
हमने कहा- क्या बताएं तत्काल और कुछ सूझ नहीं रहा है. वैसे हम इतना तो जानते हैं कि उपयोगी शब्द सामान्य भौतिक वस्तु के लिए आता है जबकि ‘योगी’ तो अलौकिकता के निकट होता है. ‘उपयोगी’ को यूजफुल भी मानें तो ‘यूज एंड थ्रो’ ही ध्यान में आता है. अगर रोमन के दो अक्षरों यू और पी से शब्द बनाएं तो ‘अप’ बनता है जो उपसर्ग है और उसका अर्थ ऊपर, ऊंचा जैसा कुछ होता है जैसे अपवार्ड, अपहोल्ड, अपकमिंग आदि.
यदि हिंदी वाला ‘अप’ लें तो यह भी उपसर्ग ही है लेकिन अर्थ उल्टा, हीन, घटिया हो जाता है, जैसे अपमान, अपशब्द, अपकीर्ति, अपस्मार आदि. भाजपा तो शुचिता और शुद्धतावादी पार्टी है उसे ऐसे ‘हिंगलिश’ शब्द बनाने की क्या ज़रूरत आ पड़ी. संस्कृत तो विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा है.
उपसर्ग तो उपसर्ग ही होता है. किसी भी महाकाव्य में कम से कम आठ सर्ग होने चाहियें जबकि ‘उपसर्ग’ तो पूरा एक सर्ग भी नहीं, उससे भी कम ‘उपसर्ग’ है. क्या फर्क पड़ता है कहीं भी कैसे भी लगा दो. ऐसे में हमारे अनुसार तो ‘उपयोगी’ शब्द ‘योगी’ जी के सामने बहुत छोटा है.
बोला- फिर भी एक बार तो मोदी जी ने जनता को स्तंभित कर दिया, ‘योगी उपयोगी शेष सब अनुपयोगी’.
हमने कहा- सब चलता रहता है, चुनाव है, चुनाव में भाषा नहीं, भाष्य चलता है.भष का एक अर्थ भौंकना भी होता है. क्या फर्क पड़ता है अगर आगे से रोमन के यू और पी से ‘उप’ बनाने पर हट हुट, शट शुट, कट कुट, बट बुट हो जाए तो.
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स