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• Tue, 6 Jul 2021 1:41 pm IST


शाहूजी महाराज थे भारत में आरक्षण के जनक


भारत के इतिहास में धार्मिक सहिष्णुता, प्रजावत्सलता और शांतिप्रियता के कारण सम्राट अशोक और मुगल बादशाह अकबर को महान शासक माना जाता है. लेकिन 19वीं शताब्दी के अंतिम दौर में महाराष्ट्र की कोल्हापुर रियासत के राजा छत्रपति शाहूजी महाराज को अपने प्रजातांत्रिक मूल्यों और सामाजिक न्याय के लिए जाना जाता है. मराठा वीर शिवाजी की तीसरी पीढ़ी में 26 जून 1874 को जन्मे शाहूजी महाराज ने 1896 में कोल्हापुर रियासत की बागडोर संभाली. उन्होंने अपने राज्य के प्रशासन में सभी जातियों की समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 1902 में पिछड़ी जातियों के लिए 50 फ़ीसदी आरक्षण लागू किया. इसलिए उन्हें भारत में आरक्षण व्यवस्था का जनक माना जाता है.


दरअसल, भारत की तमाम स्टेटों की तरह कोल्हापुर राज्य में भी ब्राह्मणों का वर्चस्व था. आरक्षण लागू होने से पहले कोल्हापुर के सामान्य प्रशासन में कुल 71 पदों में से 60 पर ब्राह्मण अधिकारी नियुक्त थे. इसी प्रकार 500 क्लर्कों में से 490 ब्राह्मण थे. जबकि ब्राह्मणों की आबादी मात्र तीन से चार फीसदी थी. इसको देखते हुए शाहूजी महाराज ने 1901 में जातिगत जनगणना करवाई और आरक्षण व्यवस्था लागू की. इसके परिणाम स्वरूप 1912 में कुल 95 पदों पर गैर ब्राह्मण अधिकारियों की संख्या 60 हो गई. शाहूजी महाराज ज्योतिबा फुले से बहुत प्रभावित थे. ज्योतिबा फुले कृत 'गुलामगिरी' उनकी सबसे प्रिय किताब थी. उन्होंने अपने राज्य में 'सत्यशोधक समाज' आंदोलन चलाया. 1911 में अपने संस्थान में सत्यशोधक समाज की स्थापना की.


फुले दंपति द्वारा शूद्रों और स्त्रियों की शिक्षा के लिए किए गए काम से प्रेरित होकर शाहूजी महाराज ने अपने राज्य में आधुनिक शिक्षा लागू की. 1912 में उन्होंने प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया. तदोपरांत 25 जुलाई 1917 को शाहूजी महाराज ने प्राथमिक शिक्षा को निशुल्क कर दिया. उन्होंने 500 से 1000 तक की जनसंख्या वाले प्रत्येक गांव में स्कूल खोले. गरीब और पिछड़े-दलित बच्चों के लिए उन्होंने 'शिवाजी मराठा बोर्डिंग हाउस' नाम से निशुल्क छात्रावास खोले . 15 अप्रैल 1920 को नासिक में एक छात्रावास का शिलान्यास करते हुए शाहूजी महाराज ने कहा-"जातिवाद का अंत जरूरी है. जाति को समर्थन देना अपराध है. हमारे समाज में सबसे बड़ी बाधा जाति है." धर्म का असली मर्म मानवसेवा है. इसलिए धर्म स्थलों पर दान की संपत्ति का लोकहित में इस्तेमाल होना चाहिए. शाहूजी महाराज ने 9 जुलाई 1917 को एक आदेश जारी करके कोल्हापुर राज्य के सभी धार्मिक स्थलों की संपत्ति पर राज्य का अधिकार स्थापित कर दिया.


हाल में तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने मंदिरों में गैर ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्त का आदेश पारित किया है. दक्षिणपंथियों द्वारा इसका विरोध भी हो रहा है. लेकिन शाहूजी महाराज ने एक सदी पहले ही कोल्हापुर राज्य में पिछड़ी जाति के मराठा पुजारियों की नियुक्ति का आदेश पारित किया था. इन पुजारियों के प्रशिक्षण के लिए उन्होंने 1920 में एक विद्यालय भी खुलवाया था. शाहूजी महाराज ने दलितों और स्त्रियों के अधिकारों के लिए ठोस कदम उठाए. 1919 में उन्होंने अछूतों को इलाज के लिए अस्पताल में प्रवेश का अधिकार दिया. इसके पहले अन्य सार्वजनिक स्थानों की तरह किसी अछूत का अस्पताल में भी प्रवेश वर्जित था. इसी साल उन्होंने एक आदेश द्वारा प्राइमरी स्कूल से लेकर कॉलेजों में दलितों के साथ होने वाले अन्याय और दुर्व्यवहार को समाप्त कर दिया. अब जाति के आधार पर स्कूल में बच्चों के साथ भेदभाव नहीं संभव था. सरकारी नौकरियों में भी उन्होंने दलितों के साथ होने वाले अन्याय और छुआछूत को समाप्त कर दिया.