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DevBhoomi Insider Desk
• Sat, 8 Jan 2022 4:58 pm IST


लखीमपुर केस के सबक याद रखने चाहिए


लखीमपुर हिंसा मामले में विशेष जांच टीम ने जो आरोपपत्र दायर किया है, उसमें कहा गया है कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र उर्फ मोनू ने जानबूझकर पूरी घटना को अंजाम दिया। आरोपपत्र के अनुसार, आशीष मिश्र ने 12 लोगों को शामिल कर वारदात की तैयारी पहले ही कर ली थी। यह बात हैरत में डालती है कि एक पढ़ा-लिखा युवक, जिसका परिवार राजनीति में हो, इतना अव्यावहारिक और नासमझ होगा कि वह इस तरह का अपराध करेगा। अगर आरोप साबित हो गए तो उसे आजीवन कारावास की सजा भुगतनी पड़ सकती है। 3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा में कृषि कानून का विरोध कर रहे चार किसानों और एक पत्रकार सहित 8 लोगों की मृत्यु हुई थी। इनमें तीन बीजेपी कार्यकर्ता थे। ध्यान रहे, चार आंदोलनकारी और एक पत्रकार की हत्या के मामले में दर्ज प्राथमिकी का ही आरोपपत्र दायर हुआ है।

पहले से थी तैयारी
जब यह घटना हुई, तभी से केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र द्वारा 25 सितंबर को संपूर्णानगर नगर में दिए गए भाषण का एक अंश टीवी से लेकर सोशल मीडिया पर चलने लगा। इसमें अजय मिश्रा टेनी ने किसान गोष्ठी में काले झंडे दिखाने वाले किसानों को सुधर जाने की नसीहत देते हुए सबक सिखाने की चेतावनी दी थी। आरोपपत्र के मुताबिक, आशीष ने प्रदर्शनकारी किसानों को सबक सिखाने की ही मंशा से उन पर गाड़ी चढ़वा दी। इसमें अपराध में इस्तेमाल हुई थार गाड़ी में आशीष के होने की भी बात है। इसमें कहा गया है कि उसके मित्र अंकित दास के साथी नंदन सिंह बिष्ट ने आशीष की राइफल से ही गोली चलाई थी। यह भी कि अंकित दास ने अपने ड्राइवर लतीफ उर्फ काले के साथ मिलकर लखनऊ से ही हथियार जुटाना शुरू कर दिया था।

मंत्री के 25 सितंबर के वक्तव्य से नाराज आंदोलनकारियों ने 3 अक्टूबर को उनके गांव में आयोजित दंगल के लिए आने वाले उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का हेलिपैड पर विरोध करने का निर्णय किया था। इसे ध्यान में रखते हुए उपमुख्यमंत्री का मार्ग बदल दिया गया। आरोपपत्र के अनुसार, आशीष को पता था कि मौर्या का रूट बदला जा चुका है। इसके बावजूद वह किसानों के विरोध वाले रास्ते पर चला गया। इसमें कहा गया है कि 3 अक्टूबर को किसानों द्वारा तिकुनिया इंटर कॉलेज के पास मंत्री का होर्डिंग फाड़े जाने से वह ज्यादा नाराज हो गया था। आरोपपत्र में लिखा है कि काले ने रिपीटर से, अंकित दास ने पिस्तौल से और नंदन ने आशीष की लाइसेंसी राइफल से गोली चलाई थी। ये लोग वहां से भाग कर राइस मिल गए। सारे हथियार पहले काले के घर छिपाए गए थे। बाद में इन्हें वहां से हटा दिया गया।

यह बात सही है कि आरोपपत्र से कोई अपराधी साबित नहीं हो जाता। अंततः कोर्ट को ही फैसला देना है। फिर भी कुछ प्रश्नों के उत्तर ढूंढने होंगे। आशीष की पृष्ठभूमि को देखते हुए उसे इतना तो पता होगा कि भीड़ के बीच गाड़ियां लेकर पहुंचेगा, गोलियां चलाएगा तो उसका परिणाम बुरा ही होगा। पिता को काले झंडे दिखाए जाने या उनका पोस्टर फाड़े जाने से नाराजगी की बात मान ली जाए, तब भी सरेआम इस तरह का दुस्साहस वही करेगा, जो मानसिक रूप से किसी न किसी तरह के असंतुलन का शिकार हो। वर्तमान में भारतीय राजनीति में बाहुबलियों का पहले जैसा वर्चस्व नहीं है कि सरेआम अपराध करके बिल्कुल सुरक्षित बच जाएं। ऐसे में किसी निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए यह भी देखना होगा कि आशीष न्यायालय में अपने ऊपर लगे इन आरोपों का क्या जवाब देता है। अन्य आरोपी क्या कहते हैं, यह भी देखना होगा।

सच जो भी हो, इस प्रकरण में कई सबक निहित हैं। नेताओं के लिए अपने परिवार और बच्चों को लेकर ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत को इस कांड ने रेखांकित किया है। जब उपमुख्यमंत्री के जाने का मार्ग बदल दिया गया तो उस रास्ते से, जहां विरोध करने के लिए भीड़ इकट्ठी हो, जाने की आवश्यकता ही क्या थी? राजनीति का सामान्य सूत्र है कि ऐसी परिस्थितियों से बचकर निकलना चाहिए। आप जनप्रतिनिधि हैं, उसके परिवार से हैं तो आपकी जिम्मेदारी ज्यादा हो जाती है। अगर आप उस तरफ से जाते हैं तो विरोध आपकी नजर में जायज हो या नाजायज, वहां आपके विरुद्ध क्या बोला गया, उसे नजरअंदाज करिए। इस तरह की शिक्षा राजनीति से जुड़े हर परिवार के अंदर होनी चाहिए।

इस प्रकरण के दूसरे पहलू भी हैं, जिन पर अभी कोई चर्चा नहीं हो रही। बीजेपी के तीन मृतक कार्यकर्ताओं के संदर्भ में सचाई सामने आना अभी शेष है। लखीमपुर खीरी विरोध प्रदर्शन में जो कुछ देखा गया, वह भी स्वीकार करने योग्य नहीं है। लोकतंत्र में विरोध की एक सीमा होती है। उनके बचाव में जो कुछ भी कहा जाए, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वहां भी लाठियां चलीं। ऐसे नारे लग रहे थे जिन्हें अहिंसक विरोध प्रदर्शन का अंग नहीं माना जा सकता। विरोध करने वालों के बीच से एक समूह ने लोगों को उत्तेजित किया। इसकी भी जांच होनी चाहिए कि वे लोग कौन थे, जिन्होंने इतना उत्तेजक माहौल बनाया। स्थिति बिगाड़ने में इन लोगों की भूमिका को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। वह विडियो भी है, जिसमें प्रदर्शनकारी गाड़ियों पर प्रहार कर रहे हैं। इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

नेतृत्व की जिम्मेदारी
सभी पक्षों का साझा उद्देश्य यही हो सकता है कि आगे फिर कभी ऐसी दुखद और भयानक घटना की पुनरावृत्ति न हो। इसके लिए आवश्यक है कि दूसरे पक्ष के व्यवहार की भी ठीक से जांच करवाई जाए। उनमें जो दोषी हैं, उन्हें भी कानून के कटघरे में खड़ा किया जाए। साथ ही हर तरह के आंदोलन में नेतृत्व को ऐसा माहौल बनाना चाहिए, जिसमें लोग हद से ज्यादा उत्तेजित होकर ऐसे कदम न उठा लें, जिससे हालात बेकाबू हो जाए।
सौजन्य से - नवभारत टाइम्स