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DevBhoomi Insider Desk
• Wed, 5 Jan 2022 6:04 pm IST

नेशनल

खटारा कार से भी बेकार हुए मिग विमान


24 दिसंबर की रात राजस्थान के जैसलमेर जिले में सुदासरी नेशनल डेजर्ट पार्क के पास वायुसेना का लड़ाकू विमान मिग-21 गिर गया। पायलट विंग कमांडर हर्षित सिन्हा ने अभ्यास के लिए उड़ान भरी ही थी कि तकनीकी खराबी के कारण हुई दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। वायुसेना मामले की जांच कर रही है, लेकिन मिग-21 के साथ यह कोई पहला हादसा नहीं है, लगातार इस तरह की घटनाएं हो रही हैं।

इससे पहले 25 अगस्त को प्रशिक्षण उड़ान के दौरान राजस्थान के बाड़मेर जिले के भूरटिया गांव में एक मिग-21 एक झोपड़ी पर जा गिरा था। विमान तो जल गया, गनीमत रही कि पायलट बच गया। 20 मई को भी पंजाब के मोगा जिले के लंगियाना खुर्द गांव के पास एक मिग-21 दुर्घटनाग्रस्त हुआ था। उसे उड़ा रहे स्क्वॉड्रन लीडर अभिनव चौधरी की मौत हो गई थी। इसी साल दो और मिग-21 दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं, जिनमें एक पायलट बच गया तो दूसरे की मौत हो गई थी। पिछले करीब पांच वर्षों में 483 से भी ज्यादा मिग हादसों के शिकार हो चुके हैं, जिनके साथ हम अपने 170 से ज्यादा जांबाज पायलटों को खो चुके हैं।

बढ़ रहे हैं मिग हादसेकरीब ढाई साल पहले तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ ने इन विमानों पर कहा था कि हमारी वायुसेना जितने पुराने मिग विमानों को उड़ा रही है, उतनी पुरानी तो कोई कार भी नहीं चलाता। उन्होंने कहा था कि भारतीय वायुसेना की स्थिति बिना लड़ाकू विमानों के बिल्कुल वैसी ही है, जैसे बिना फोर्स की हवा। उनके मुताबिक मिग बनाने वाला रूस भी अब इसका इस्तेमाल नहीं करता। मिग-21 लगातार गिर रहे हैं, लगातार वायुसेना कोर्ट ऑफ इन्क्वॉयरी कराती रही है, और लगातार ही यह सवाल उठता रहा है कि फिर वायुसेना इन्हें ढो क्यों रही है?

बता दें कि वायुसेना को 1964 में पहला सुपरसोनिक मिग-21 विमान मिला था। भारत ने रूस से 872 मिग विमान खरीदे थे। इन विमानों ने 1971 के युद्ध और करगिल की लड़ाई सहित कई विपरीत परिस्थितियों में अपना लोहा मनवाया। बहुत पुराना होने के बावजूद फरवरी 2019 में पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू विमान को गिराकर इसने अपनी सफलता की कहानियों में एक और अध्याय जोड़ दिया। भारतीय वायुसेना के पास इस समय मिग-21 के अलावा सौ से ज्यादा मिग-23, मिग-27, मिग-29 और 112 मिग बाइसन हैं। मिग बाइसन में एक बड़ा सर्च एंड ट्रैक रेडार लगा है, जिससे गाइडेड मिसाइल फायर होती है। अधिकतम 2230 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाले मिग विमान में दो हजार किलो तक गोला-बारूद ले जाया जा सकता है। यह केमिकल, क्लस्टर जैसे वॉरहेड भी प्रयोग कर सकता है और इसके कॉकपिट के बाईं ओर से 420 राउंड गोलियां बरसाने का भी इंतजाम है। मिग बाइसन अपग्रेड किए हुए मिग विमान हैं, इसलिए उनका इस्तेमाल जारी रहेगा। बाकी सभी मिग विमानों को चरणबद्ध तरीके से वायुसेना से बाहर किया जाना है।

रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो मिग विमान 1960 और 70 के दशक की तकनीक से बने थे। सही मायनों में मिग विमानों को 1990 के दशक में ही सैन्य उपयोग से बाहर कर दिया जाना चाहिए था, क्योंकि इनकी उम्र दो दशक से ज्यादा समय पहले ही पूरी हो चुकी है। इनकी इतनी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं कि अब इन्हें ‘हवा में उड़ने वाला ताबूत’ भी कहा जाता है। मिग का न तो इंजन विश्वसनीय रहा, और न इनसे सटीक निशाना लग पाता है। लेकिन हम इन्हें अपग्रेड कर इनकी उम्र बढ़ाने की कोशिश करते रहे हैं और तमाम ऐसी कोशिशों के बावजूद इनकी कार्यप्रणाली धोखा देती रही है।

ये चल इसलिए रहे हैं क्योंकि इनके पुर्जे भारत में बन जाते हैं और मरम्मत भी यहीं हो जाती है। कोई कह सकता है कि राफेल, सुखोई और तेजस भी तो हैं, फिर मिग-21 ही क्यों? दरअसल भारतीय वायुसेना को अभी तक इन विमानों की खेप पूरी नहीं मिली है और इसमें लंबा समय भी लगेगा। सवाल है, क्या तब तक मिग गिरता रहेगा, मिग से भी कीमती हमारे जांबाज पायलट गिरते रहेंगे।

सौजन्य से - नवभारत टाइम्स