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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 5 May 2023 1:52 pm IST


क्यों मुक्त व्यापार से पीछे हटना ठीक नहीं?


मुक्त व्यापार को पहले की तरह अब समर्थन नहीं मिल रहा है। अमीर देशों में इसे छंटनी का कारण बताते हुए नीति-निर्माताओं ने इससे करीब-करीब किनारा ही कर लिया है। पिछली शताब्दी के दौरान संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रतिशत के रूप में व्यापार का हिस्सा बढ़ता रहा। लेकिन वैश्विक वित्तीय संकट के चरम पर पहुंचने के बाद अब यह कम होता जा रहा है। यह अफसोस की बात है क्योंकि मुक्त व्यापार सुनिश्चित करना दुनिया की सबसे अच्छी डिवेलपमेंट पॉलिसी साबित हुई है।

कमाई में बढ़ोतरी
सदियों से यह बात मानी जाती रही है कि व्यापार आमदनी बढ़ाता है क्योंकि इससे किसी देश को उस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल और उत्पादन करने का मौका मिलता है, जो वह सबसे अच्छे से कर सकता है। एक अध्ययन के मुताबिक, व्यापार हमारी आमदनी में 27 फीसदी इजाफा कर देता है। दूसरे शब्दों में व्यापार रहित दुनिया के मुकाबले सभी देशों की आमदनी औसतन एक तिहाई ज्यादा होगी। लेकिन व्यापार सिर्फ औसत आमदनी ही नहीं बढ़ाता। यह दुनिया की गरीब आबादी को दयनीय गरीबी की स्थिति से बाहर भी निकालता है। हाल की एक बहुचर्चित स्टडी में पाया गया कि इसकी वजह से आबादी के सबसे निचले 20 फीसदी की आमदनी तेजी से बढ़ी है।

हमने इसे दुनिया की दो सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों- चीन और भारत – में स्पष्ट तौर पर देखा है। जैसे-जैसे चीन का व्यापार बढ़ा, आमदनी में सात गुना बढ़ोतरी हुई और बेहद गरीब लोगों की संख्या 28 फीसदी से घटकर आज लगभग शून्य पर आ गई है। भारत की कहानी भी मिलती-जुलती ही है। जब सीमा शुल्क 1990 के 56 फीसदी से घटते हुए 2020 में छह फीसदी पर पहुंचा तो आमदनी में औसतन चार गुना बढ़ोतरी हुई और बेहद गरीब लोगों की संख्या 22 फीसदी से घटकर 1.8 फीसदी पर आ गई। दक्षिण कोरिया, चिली और वियतनाम जैसे देशों में भी ऐसा ही ट्रेंड दिखा है।

आश्चर्य नहीं कि वैश्विक नेताओं ने 2030 की समयसीमा के साथ जो कथित सस्टेनेबल डिवेलपमेंट गोल्स तय किए, उनमें एक यह भी था कि मुक्त व्यापार सुनिश्चित किया जाएगा। दुर्भाग्यवश इन लक्ष्यों को हासिल करने के मामले में दुनिया पिछड़ती जा रही है। अब तक इस दिशा में जो प्रगति हुई है, अगर आगे वही बनी रही तो लक्ष्य तक पहुंचने में करीब आधी सदी की देरी होगी।

कोपेनहेगन कंसेंसस की एक स्टडी दिखाती है कि क्यों मुक्त व्यापार ग्लोबल अजेंडा में टॉप पर होना चाहिए। रिसर्च में रोजगार कम होने की उस समस्या पर विचार किया गया है, जिसका रोना अमीर दुनिया के नेता रोते रहते हैं। स्टडी में इस बात का हिसाब लगाया गया है कि रोजगार छिनने, खुद को नए सिरे से रोजगार के लिए तैयार करने या रोजगार बाजार से हमेशा के लिए बाहर हो जाने से इन वर्करों पर कितना आर्थिक बोझ पड़ता है। लेकिन यह स्टडी ज्यादा व्यापार के फायदों पर भी रोशनी डालती है और इस लिहाज से ऐतिहासिक है कि यह पहली बार हमारे सामने मुक्त व्यापार के फायदे और नुकसान दोनों का आकलन पेश करती है। ठोस साक्ष्यों के आधार पर स्टडी बताती है कि हरेक एक्सपोर्ट-इंपोर्ट वर्कर पर इंपोर्ट की मात्रा के हिसाब से मुक्त व्यापार का खर्च अलग-अलग बैठता है। हर एक हजार डॉलर के अतिरिक्त आयात पर प्रति श्रमिक कमाई घटने और रोजगार छिनने के बढ़े हुए खतरे का खर्च श्रमिक के वेतन के करीब एक फीसदी के बराबर आता है। आर्थिक मॉडल बताता है कि अगर विश्व व्यापार में 5 फीसदी बढ़ोतरी होती है तो आज की तारीख में दुनिया के सभी मजदूरों पर आने वाला कुल खर्च होगा एक लाख करोड़ डॉलर। इस विशाल रकम से उस चिंता को समझा जा सकता है जो पॉप्युलिस्ट नेताओं की बातों में झलकती है। लेकिन गौर करने की बात यह है कि मुक्त व्यापार की बदौलत मनुष्य समाज को मिलने वाले फायदों की कीमत 11 लाख करोड़ डॉलर आंकी गई है।

जाहिर है, जिन लोगों को मुक्त व्यापार से नुकसान हो रहा है, उनकी सरकारों को पूरी मदद करनी चाहिए। मुक्त व्यापार से मिलने वाले सरप्लस से न केवल यह पूरा खर्च निकल आएगा बल्कि इसके अलावा विकास के ऐसे अवसर उपलब्ध कराए जा सकेंगे जो लोगों की आमदनी बढ़ाने और उन्हें गरीबी की दलदल से निकालने में काम आएंगे।

नए मॉडल से यह भी पता चलता है कि अमीर देश मुक्त व्यापार को लेकर ठंडे क्यों दिख रहे हैं। वजह यह है कि इसमें होने वाले खर्च का 90 फीसदी हिस्सा उन्हीं के सिर पर आने वाला है। लेकिन भूलना नहीं चाहिए कि खर्च किए गए हर एक डॉलर पर 7 डॉलर का फायदा भी अमीर देशों को होने वाला है। और यह भी कि व्यापार दुनिया के गरीब हिस्से के लिए कितना अच्छा साबित होने वाला है। यहां खर्च तो महज 1500 करोड़ डॉलर का होगा, लेकिन फायदा एक लाख करोड़ डॉलर के भी पार चला जाएगा। हरेक डॉलर पर 95 डॉलर का दीर्घकालिक फायदा होगा जो निश्चित तौर पर आमदनी बढ़ाने और गरीबी घटाने में मददगार होगा।

भारत बना मिसाल
कोविड-19 महामारी ने भारत को व्यापार का नया मॉडल स्वीकार करने को प्रेरित किया। जहां दुनिया भर के देशों में यह अहसास गहरा रहा था कि कच्चे माल के लिए किसी एक स्रोत पर निर्भरता खतरनाक हो सकती है, वहीं भारत ने तत्काल कदम उठाते हुए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम पर अमल शुरू कर दिया। इसने न केवल आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया बल्कि मोबाइल फोन जैसे उत्पादों के निर्यात में भी मदद की। इसके साथ ही भारत ने संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते करने शुरू किए।

अगर हम सस्टेनेबल डिवेलपमेंट गोल्स को लेकर वाकई गंभीर हैं तो हमें यह समझने की जरूरत है कि जिंदगियों को बेहतर बनाने और आमदनी बढ़ाने का एक बेहतरीन तरीका है मुक्त व्यापार। नुकसान झेलने वालों की दिक्कतों पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है, लेकिन व्यापार अच्छा है अमीर देशों के लिए और बहुत अच्छा है दुनिया के गरीबों के लिए।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स