इमरान खान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बने अभी साढ़े तीन साल ही हुए हैं, लेकिन लगता नहीं कि वह अपना कार्यकाल पूरा कर पाएंगे। हालांकि जैसे जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्ता-पलट कर दिया था, मौजूदा सेनापति कमर बाजवा को शायद वैसा न करना पड़े। बहुत संभव है, तख्ता-पलट की जगह वोट-पलट के जरिए इमरान को अपदस्थ किया जाए। नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग, जरदारी की पीपीपी और फजलुर रहमान की जमात उलेमा-इस्लाम- तीनों ने मिलकर इमरान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखा है, जो कब का पास हो जाता। लेकिन पाकिस्तानी संसद की बैठक नहीं बुलाई जा सकी, क्योंकि अभी उसी भवन में ‘इस्लामिक सहयोग संगठन’ का सम्मेलन चल रहा है। बहरहाल, अविश्वास प्रस्ताव पर शीघ्र ही मतदान होना है, लेकिन यह भी संभव है कि उसके पहले ही इमरान अपने इस्तीफे की पेशकश कर दें। इमरान के इस्तीफे के आसार इसलिए बढ़ गए हैं कि जिस फौज के दम पर उनका तकिया था, वही अब उन्हें हवा देने लगी है।
फौज से मोहभंग
इमरान की पार्टी ‘पाकिस्तान तहरीके-इंसाफ’ पार्टी (पीटीआई) 2018 के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। संसद की 343 सीटों में से उसे 155 सीटें मिली थीं। लेकिन कई अन्य पार्टियों की 24 सीटें जोड़कर वह सत्तारूढ़ हो गई। इमरान की इस जीत के पीछे पाकिस्तान फौज की शै थी। भुट्टो की पीपीपी और नवाज की मुस्लिम लीग के कई सांसदों को तोड़कर फौज ने उन्हें इमरान की पार्टी का उम्मीदवार बनवा दिया था। नवाज शरीफ को अपदस्थ करने की मांग करने के कारण इमरान पाकिस्तानी फौज के करीबी बन गए थे। लेकिन फौज और इमरान का एक-दूसरे से जल्दी ही मोहभंग हो गया। दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध कदम उठाने लगे। 2019 में जब जनरल बाजवा का कार्यकाल बढ़ाया गया तो उस आदेश को इतनी देर से जारी किया गया कि वह सर्वोच्च न्यायालय और जनता में भी विवाद का विषय बन गया। अदालत के आदेश पर उसे संसद से पास करवाना पड़ा। उधर, इमरान खान के भाषण तो जोरदार होते रहे लेकिन विरोधी दलों ने उनके खिलाफ काफी बड़े-बड़े प्रदर्शन सारे देश में आयोजित कर डाले। महंगाई और प्रशासनिक सुस्ती ने इमरान सरकार की हालत खस्ता कर दी। फौज इस बात से भी नाराज़ थी कि इमरान ने कश्मीर के सवाल को जोर से नहीं उठाया। उन्होंने भारत के साथ ढिलाई बरती।
अमेरिका से भी पाकिस्तान के रिश्तों में कोई सुधार नहीं हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और इमरान के बीच आज तक सीधा संवाद नहीं हुआ है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अभी तक पाकिस्तान को कठघरे में ही रखा है। उसे अब तक छह बिलियन डॉलर की जगह सिर्फ एक बिलियन डॉलर मिले हैं। फौज तो पाकिस्तान की असली मालिक है, लेकिन फौज और इमरान के बीच गंभीर तनाव पैदा हो गया है। जनरल बाजवा का यूं तो इमरान ने कार्यकाल बढ़ाकर 2022 तक कर दिया था, लेकिन बाजवा को यह बात नागवार गुजर रही थी कि इमरान उनके उत्तराधिकारी सेनापति की खोज में जुट गए थे। इमरान ने खुफिया एजेंसी आईएसआई के मुखिया जनरल फैज हमीद की गोटी आगे बढ़ानी शुरू कर दी थी। उन्हें तालिबान से सीधा संपर्क करने के लिए इमरान ने काबुल भी भेजा था। उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रचार भी खूब मिलने लगा। उन्हें 11वीं कोर का कमांडर बनाकर पेशावर भेज दिया गया, लेकिन उनकी जगह गुप्तचर विभाग के मुखिया के तौर पर जनरल नदीम अंजुम को नियुक्त करने में इमरान ने देरी करनी शुरू कर दी। जनरल बाजवा और अन्य फौजियों के कान खड़े हो गए। उनका असंतोष और अविश्वास सार्वजनिक हो गया। फिर क्या था, सारे प्रमुख विरोधी दल मिल गए और उन्होंने संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया। इमरान सरकार ने बीच-बचाव करने के लिए पाकिस्तान के पूर्व सेनापति राहिल शरीफ को सऊदी अरब से इस्लामाबाद भी बुलवाया, लेकिन उसका भी कोई असर जनरल बाजवा और नदीम अंजुम पर नहीं हुआ।
फौज का संदेश यही है कि इमरान खुद ही इस्तीफा दे दें। पाकिस्तान के विरोधी दलों ने अपने बहुमत की जुगाड़ बिठा ली है और मियां नवाज शरीफ के छोटे भाई शाहबाज शरीफ को भावी प्रधानमंत्री भी घोषित कर दिया है। अपने भाषणों और टीवी भेंटवार्ताओं में विरोधी नेता- मरियम नवाज और बिलावल भुट्टो इमरान खान का काफी मजाक उड़ाते हैं। इमरान भी ईंट का जवाब पत्थर से दे रहे हैं। वह नवाज शरीफ को गीदड़ और चमगादड़ कहते हैं और शाहबाज शरीफ को हर किसी का बूट पालिश करने वाला बताते हैं। वे तीनों विरोधी पार्टियों के नेताओं- शाहबाज, बिलावल और फजलुर रहमान को भ्रष्ट, देशद्रोही और कमअक्ल बताते हैं। इस समय पाकिस्तानी राजनीति में कटुता चरम पर है।
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ऐसी ही स्थिति में इमरान ने यूक्रेन पर भारतीय नीति की तारीफ कर दी और कह दिया कि पाकिस्तान भी किसी गरीब की जोरू नहीं है कि वह आंख मींचकर किसी देश का समर्थन या विरोध करे। पाकिस्तान किसी के आगे झुकेगा नहीं। यह तो ठीक है लेकिन इस्लामिक देशों के सम्मेलन में उस चीन के विदेश मंत्री वांग यी को इमरान ने अपना विशेष अतिथि बनाया है, जिसने शिनच्यांग के दस लाख मुसलमान उइगरों को यातना-शिविरों में डाल रखा है।
अदालती दांव
इमरान के हौसले अभी भी बुलंद मालूम पड़ रहे हैं। हो सकता है पाकिस्तानी संविधान की धारा-63 ए का इस्तेमाल करके वह अपने बागी सांसदों को मतदान के पहले ही अपदस्थ करवाने की कोशिश करें। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में इस आशय की याचिका लगा रखी है। बस, अब अदालत ही उन्हें किसी तरह बचा सकती है। वरना पाकिस्तान के लोग यह मानकर चल रहे हैं कि इमरान के दिन लद गए हैं। लेकिन यह सवाल भी बड़ा है कि जो पाकिस्तानी फौज इमरान को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है, वह नवाज शरीफ के भाई को कैसे बर्दाश्त करेगी?
सौजन्य से : नवभारत टाइम