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DevBhoomi Insider Desk
• Wed, 15 Jun 2022 1:43 pm IST


खाओ तो कद्दू से और क्यों न खाओ कद्दू से


तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है-

इहां कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं। जो तरजनी देखि मरि जांहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मै कछु कहा सहित अभिमाना।।

इतिहास से लेकर भारतीय समाज तक में कद्दू को वह जगह नहीं मिली जिसका यह फल हकदार है। रामचरित मानस की इन पंक्तियों में परशुराम के अभिमान को चूर करने के लिए कुम्हड़ बतिया यानी फूल से फल में बदलती कद्दू की बतिया को कमजोरी का प्रतीक बताया है। इतना कमजोर कि जिसे उंगली का इशारा भी दिखा दो तो वह मुरझा जाए। कद्दू को और भी ज्यादा अपमानजनक ढंग से पेश करने का काम कुछ उत्तर भारतीय कहावतों ने भी किया। मसलन घरों में जब कभी कोई किसी खाने को लेकर ना-नुकुर करता तो बड़े उसको बोल देते- खाओ तो कद्दू से न खाओ तो कद्दू से।

फिर भी परम ज्ञानियों ने कभी भी कद्दू को हल्के में नहीं लिया। अक्सर घर की शादी बारातों में, तीज त्योहारों, जनेऊ, मुंडन जैसे पारम्परिक उत्सवों और जीवन मरण के मौके पर जब खाना बनता तो उसमें कद्दू जरूर होता। बचपन की याद करूं तो गांव की शादियों में बड़ी-बड़ी कढ़ाइयों में बड़े-बड़े कद्दुओं के बड़े-बड़े टुकड़ों को सरसों तेल में हींग, मेथी और कलौंजी के साथ भूना जाता। मोटे तगड़े हलवाई बड़े-बड़े करछुलों से उसे घोटते और पकने के करीब पहुंचने पर उसमें थोड़ा गुड़, इमली या अमिया की फांक भी डाली जाती। फिर पंगत बिछती, पत्तल लगाए जाते और पूरी कचौड़ी के साथ इन्हें परोसा जाता। बच्चों को अक्सर कद्दू से शिकायत रहती। आखिर हर दावत में कद्दू क्यों। खासतौर पर गंगा यमुना के दोआबे वाले ब्राहमणों के घरों में।

फिर एक दिन एक बुजुर्ग ने मुझे एक प्रैक्टिकल दिखाया। शाम को उन्होंने दस पूरियों की एक गड्डी बनाई। उसके ऊपर कद्दू की सूखी सब्जी रख दी। फिर बोले अब सुबह इसे देखना। सुबह देखा तो कद्दू की तरी रिसते-रिसते नीचे की पूरी तक पहुंच गई थी। फिर उन्होंने समझाया कि कद्दू की सब्जी बहुत पौष्टिक होती है। साथ ही इसमें फाइबर और ऐसे तत्व होते हैं जो पूरी कचौड़ी जैसे गरिष्ठ खाने को पचने में मदद करते हैं। कद्दू को लेकर कोई कितना भी नाक-भौं सिकोड़े लेकिन इसकी खूबियों से दुनिया भर के पाक शास्त्री और पोषण विशेषज्ञ परिचित हैं। भारत में उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक कद्दू को सदियों से खाया जा रहा है। उत्तर भारत में हलवे, खीर और सब्जी के तौर पर तो दक्षिण भारत में सांभर के रूप में। कद्दू का भाई असली कुम्हड़ा यानी पेठे की तो तरह-तरह की मिठाई बनती हैं। अंगूरी, केसरिया, सूखा, रसीला, पान और तरह-तरह के फ्लेवर में। आगरा की पहचान ताजमहल तो है ही लेकिन पेठे ने भी उसकी प्रसिद्धि में चार चांद लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एग्जॉटिक जुकिनी भी कद्दू की ही प्रजाति है। कद्दू अपने स्वाद और गुणों की वजह से दुनिया भर में खाया जाता है। अगर इसका इतिहास खंगालें तो ईसा पूर्व पांच हजार से सात हजार वर्ष तक इनके पाए जाने के प्रमाण मिले हैं। मैक्सिको और अमेरिका में इसके सुबूत मिले हैं। अमेरिका और यूरोप में तो कद्दू को तरह-तरह से खाया जाता है। मूल अमेरिकी लोगों में कद्दू को लेकर तरह तरह की किवदंतियां हैं। यह लोग पेट और आंतों के इलाज में इसका इस्तेमाल करते हैं। तरह-तरह की मान्यताएं अपने देश में भी हैं। उत्तर भारत के कई परिवारों में कद्दू को स्त्रियों के हाथों से कटवाना वर्जित है। कुछ पूजा पाठ में बलि के लिए कद्दू व नारियल इस्तेमाल किए जाते हैं।

दुनिया भर में हर साल करीब 28 मिलियन टन कद्दू पैदा होता है। सबसे ज्यादा 7.4 चीन में, 5.1 भारत में और यूक्रेन में 1.1 मिलियन टन कद्दू होता है। रूस और अमेरिका दोनों जगहों पर एक मिलियन टन से कुछ अधिक कद्दू उगाया जाता है। अमेरिका और यूरोप में प्रोसेस्ड पम्पकिन और टिंड पम्पकिन का काफी प्रचलन है। फ्रोजेन कद्दू और इसका सूप यहां के डिपार्टमेंटल स्टोर्स में आसानी से मिल जाता है। कद्दू की मिठाइयां, पाई व केक आदि बनाने का भी चलन है। इसी तरह एल्कोहलिक और नॉन एल्कोहलिक पेयों में भी कद्दू के फ्लेवर का इस्तेमाल किया जाता है। ब्रिटेन, आयरलैंड और अमेरिका के निवासी बने यूरोपियन प्रवासियों में हैलोविन के मौके पर कद्दू का काफी महत्व होता है। पम्पकिन फेस्टिवल या कद्दू महोत्सव भी मनाए जाते हैं। इन उत्सवों में लोगों के बीच प्रतियोगिता होती है कि कौन कितना बड़ा और बढ़िया कद्दू लेकर आएगा। आम तौर पर सारी दुनिया में कद्दुओं का औसत वजन चार से आठ किलो के बीच होता है। कुछ कद्दू पैंतीस किलो के आसपास भी होते हैं। वैसे 2021 में ही इटली में सबसे बड़ा कद्दू 1226 किलो का उगाया गया है। कद्दुओं के साथ भी आम के आम और गुठलियों के दाम वाली कहावत चरितार्थ होती है। इसका गूदा और छिल्का तो खाया ही जाता है लेकिन इसके बीज बड़े ही काम के होते हैं। खासतौर पर इनका इस्तेमाल स्नैक्स के तौर पर होता है। सीमित मात्रा में इनका इस्तेमाल रक्तचाप को नियंत्रित रखने में कारगर बताया जाता है। कद्दुओं के इतने सारे गुणों से परिचित होने के बाद अब अगर आप से कोई कहे कि खाओ तो कद्दू से और न खाओ तो कद्दू से तो तुरंत बोलिए-चलिए आप कद्दू परोसिए। खैर अब कितनी तारीफ करूं कद्दू की। चलते-चलते शारिक बल्यावी का यह शेर और बात खत्म-

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स