ऑक्सिजन पृथ्वी पर जीवन का एक बुनियादी हिस्सा है। करीब 2.5 अरब वर्ष पहले वायुमंडल में इस गैस की मात्रा बढ़ने के बाद हमारे ग्रह पर बहु कोशिका जीवन पनपने लगा। लेकिन पृथ्वी पर जीवन का सारा श्रेय ऑक्सिजन को नहीं दिया जा सकता। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी पर जीवन के फलने-फूलने में एक और तत्व ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वह है लोहा।
ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय के भूविज्ञानी जॉन वेड और उनके दल ने पृथ्वी के इतिहास में जीवन के लिए लौह तत्व की उपलब्धता की नए सिरे से पड़ताल करने के बाद बताया कि इस तत्व के लेवल में उतार-चढ़ाव से पृथ्वी पर जीवन के विकास क्रम को आगे बढ़ाने में मदद मिली। आज पृथ्वी पर लगभग हर किसी के जीवन के लिए लोहा एक अनिवार्य तत्व है। इसकी वजह से ऊर्जा उत्पन्न होती है, डीएनए की अनुकृति बनती है, जीनों की अभिव्यक्ति होती है और कोशिकाएं ऑक्सिजन हासिल करती हैं। पृथ्वी पर एक-दो ही जीव ऐसे हैं जिन्हें जिंदा रहने के लिए इस तत्व की आवश्यकता नहीं पड़ती।
पृथ्वी के प्रारंभिक दिनों में ऊपरी और निचली परत मैंटल में समुचित मात्रा में भौगोलिक लोहा मौजूद था। यह लोहा शायद ढेरों उल्कापिंड पृथ्वी पर लेकर आए। प्राचीन समुद्रों में इस पदार्थ के आसानी से घुलनशील होने के कारण समुद्री पानी में लोहे की भरमार थी। 2.5 अरब वर्ष पहले पृथ्वी पर ऑक्सिजन वृद्धि की घटना (ग्रेट ऑक्सिडेशन इवेंट) के बाद परिस्थितियां बदलने लगीं। घुलनशील लोहे की मात्रा कम होने लगी और कोशिकाओं के बीच लोहे के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगी। इसलिए जीव रूपों के लिए मृत कोशिकाओं से लोहे की रिसाइकलिंग करना, जीवित कोशिकाओं से लोहा चुराना या किसी अन्य जीवित कोशिका में रहना और उसकी लोहा एकत्र करने की क्षमता का प्रयोग करना आवश्यक हो गया था।
वैज्ञानिकों का खयाल है कि लोहे के लिए इस लड़ाई ने बहु कोशिका जीवों के विकास का सिलसिला शुरू किया। उनका कहना है कि वायुमंडलीय ऑक्सिजन में वृद्धि के बाद पृथ्वी के समुद्रों ने अपने अधिकांश घुलनशील लोहे को खो दिया। जब ऑक्सिजन की उपस्थिति में पानी और ठोस लोहे के बीच क्रिया होती है तब लोहे का तेजी से ऑक्सिकरण हो जाता है। इससे जीवों के लिए लोहे का प्रयोग करना मुश्किल हो जाता है। इस रूप में तत्व को हथियाने के लिए कोशिकाओं को छोटे-छोटे मॉलिक्यूल्स विकसित करने पड़ते हैं। इन्हें साइडरोफोर कहा जाता है। आज सभी बैक्टीरिया, पौधों और फफूंदी में ये संरचनाएं होती हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि जैसे-जैसे साइडरोफोर से युक्त जीवों ने लोहे से भरपूर सीमित भौगोलिक स्रोतों के आसपास जमा होना शुरू किया, कोशिकाओं के बीच जटिल किस्म की पारस्परिक अंतर-क्रिया बढ़ती गई। नए अध्ययन के मुताबिक पृथ्वी पर ऑक्सिजन वृद्धि की घटना के बाद जीवों के लिए लोहे की उपलब्धता में कमी के बावजूद जैविक प्रणालियों में लोहे का प्रमुख स्थान बना रहा। इसकी वजह यह है कि लोहे में कुछ खास विद्युत-चुंबकीय गुण हैं। इन गुणों की बदौलत वह अनेक जैव-रासायनिक क्रियाओं को न सिर्फ संभव बनाता है बल्कि उनकी कार्यकुशलता को भी बढ़ाता है। इन क्रियाओं में दूसरे तत्व लोहे जैसा काम नहीं कर सकते।
लोहे का कोई दूसरा विकल्प नहीं होने के कारण जीवों के सामने जीवित रहने के लिए प्रतिस्पर्धा करने, छल करने या सहयोग करने के सिवाय और कोई चारा नहीं था। इन परिस्थितियों में अवश्य ही जीवों के डीएनए समूह और कोशिकाओं के व्यवहार में परिवर्तन हुए होंगे। पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत लोहे की बहुतायत से हुई होगी लेकिन इस तत्व के कम होने के बाद ही जीवों ने जटिल रूपों में विकसित होना आरंभ किया।
आने वाले समय में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि से खाद्य श्रृंखला में लोहे की कमी बढ़ेगी। रिसर्चरों का कहना है कि ऐसी स्थिति में यह जानना जरूरी है कि जीवन इस महत्वपूर्ण तत्व की उपलब्धता में उतार-चढ़ाव से कैसे निपटता है। नए अध्ययन से मंगल जैसे दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावना तलाशने का एक नया पैमाना मिल सकता है। मंगल की ऊपरी परत पर आयरन ऑक्साइड खनिज हो सकता है। यदि इस ग्रह पर समुचित मात्रा में लोहा मौजूद है तो यह वहां जीवन के कुछ सरल रूपों के विद्यमान होने का संकेत हो सकता है।
सौजन्य से - नवभारत टाइम्स