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• Mon, 20 Nov 2023 11:10 am IST


कोविड की उस त्रासदी को कितनी जल्दी भूल गए हम


तमाम अदालतों और नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश धरे रह गए, पुलिस प्रशासन के दावे भी। हर साल की तरह पराली भी खूब जली और पटाखे भी। दिल्ली एनसीआर में वायु और ध्वनि प्रदूषण का रेकॉर्ड टूट गया। पर्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10 (हवा में मौजूद सूक्ष्म कण) का स्तर बेहद खतरनाक स्थिति में पहुंच गया। पहले से ही प्रदूषित हवा में सांस ले रहे यहां के लोगों ने भी हवा को और ज़हरीली बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह हाल तब है जब अभी मात्र ढाई साल पहले ही हम एक बड़ी त्रासदी से गुज़रे हैं। कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट का कहर इतनी जल्दी कैसे भूल गए हम? कम से कम हाल में हुईं उन रिसर्च के नतीजे ही याद रख लेते, जिनमें आगाह किया गया था कि कोरोना वायरस और ज़हरीली हवा का डेडली कॉम्बिनेशन हमें कई तरह के गंभीर रोगों का शिकार बना रहा है। इनसे हमारे लंग्स को तो नुकसान पहुंच ही रहा है, हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक का खतरा भी बढ़ रहा है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की हालिया स्टडी के आधार पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने सलाह भी दी कि जिन्हें गंभीर कोविड हुआ था, उन्हें अभी एक-दो साल तक बेहद सावधानी बरतने की ज़रूरत है। ऐसे लोगों को कठिन परिश्रम, दौड़ने-भागने और अत्यधिक कसरत से बचना चाहिए। कोविड महामारी के बाद से ही हार्ट अटैक से अचानक होने वाली मौतों के केस लगातार सामने आने के बाद यह स्टडी की गई थी। ऐसे जानलेवा साइड इफेक्ट्स के बावजूद लोगों में डर मानो खत्म हो गया है। कोई समझने को तैयार नहीं कि कोरोना वायरस की वजह से कमज़ोर हो चुके हमारे फेफड़ों पर यह ज़हरीली हवा कितना घातक असर डाल रही है। दिल्ली का प्रदूषण स्तर तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से 10 गुना अधिक है, तो सोचिए कि आप कितना ज़हर अंदर खींच रहे हैं।

आज दुनियाभर में 10 में से 9 लोग प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। कैंसर पर रिसर्च करने वाली इंटरनैशनल एजेंसी ने 2015 में ही अपनी रिपोर्ट में बता दिया था कि ऐसी ज़हरीली हवा से लंग्स कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। अमेरिका और फ्रांस में हुई ताज़ा रिसर्च के मुताबिक हवा में मौजूद प्रदूषित तत्वों से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है। ये मामले उन जगहों पर अधिक पाए गए, जहां हवा में पीएम 2.5 और 10 की मात्रा ज्यादा थी। ऐसी प्रदूषित हवा गर्भ में मौजूद बच्चे के लंग्स पर सीधा असर डाल रही है, जिसके कारण दुनियाभर में हर साल 40 लाख प्री मैच्योर मौत हो रही हैं। इससे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह आई है कि प्रदूषण से लोग डायबिटिक भी हो रहे हैं, जो अब तक लाइफस्टाइल डिज़ीज़ मानी जाती है। एम्स और सेंटर फ्रॉर क्रॉनिक डिज़ीज़ कंट्रोल के ब्रिटिश जर्नल में प्रकाशित ताज़ा अध्ययन में यह बात सामने आई है। करीब सात साल तक ये रिसर्च दिल्ली और चेन्नई में रहने वाले लोगों पर की गई, जिसमें पाया गया कि पीएम 2.5 की अधिक मात्रा वाली हवा में साल भर तक सांस लेने पर मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है। ऐसी हवा में प्रदूषित कण इतने छोटे होते हैं कि ये हमारे लंग्स के ज़रिए खून तक पहुंच कर शुगर कंट्रोल करने वाली नैचरल इंसुलिन पर सीधा वार कर रहे हैं।

ग्रीनपीस साउथईस्ट एशिया की तीन साल पहले आई रिपोर्ट के बाद तो हमें सबसे ज्यादा सचेत होने की ज़रूरत थी, जिसमें बताया गया था कि वायु प्रदूषण की वजह से दुनिया में सबसे ज्यादा 54 हज़ार मौतें दिल्ली में हुईं। उसके बाद टोक्यो, शंघाई, बीजिंग और मुंबई में। समुद्र किनारे बसी मुंबई भी अब वायु प्रदूषण को लेकर खबरों में रहने लगी है। बेहिसाब कंस्ट्रक्शन गतिविधि बढ़ने से यहां की हवा बेहद खराब श्रेणी में आ चुकी है। अगर ये सारी रिपोर्ट पढ़कर भी हम इस बड़े खतरे की तरफ आंखें मूंदे बैठे रहे तो यह खुद के साथ ही नहीं, आने वाली पीढ़ियों के साथ भी बड़ा अन्याय होगा।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स