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• Sun, 11 Apr 2021 6:14 pm IST


चुनाव आयोग और दलों में बढ़ी दूरी


पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान जहां राजनीतिक दलों के बीच जंग जारी है, वहीं एक बार फिर चुनाव आयोग विवादों में है। विरोधी दलों ने आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कई गंभीर आरोप लगाए तो ईवीएम की सुरक्षा का मसला भी उठा। हालांकि हाल में आयोग पर विपक्षी दलों ने जो आरोप लगाए हैं, वे नए नहीं हैं। लेकिन इस बार जिस तरह शीर्ष विपक्षी नेताओं ने सार्वजनिक मंचों से चुनाव आयोग पर सीधा हमला किया है, वह जरूर चिंता की बात है। आयोग ने तमाम दलों को अपने जवाब से संतुष्ट करने की कोशिश की है, लेकिन चुनाव कराने वाली संवैधानिक संस्था और राजनीतिक दलों में जिस तरह से दूरी बढ़ रही है वह उचित नहीं है। अविश्वास दूर करने के लिए दोनों ओर से सकारात्मक पहल की जरूरत है। आयोग ने भी संकेत दिया है कि ये चुनाव निपटने के बाद वह इस दिशा में पहल करेगा।
ममता से होता रहा है टकराव
चुनाव आयोग ने अपने ऊपर लग रहे आरोपों के बाद ममता बनर्जी को जिस तरह चिट्ठी लिखी, वह भी असाधारण थी। इनमें न सिर्फ आरोपों को नकारा गया, बल्कि बतौर सीएम आयोग पर लगातार आरोप लगाने के क्या नकारात्मक नतीजे हो सकते हैं, इसके बारे में भी बताया गया। दरअसल ममता और चुनाव आयोग के बीच की यह जुबानी जंग नई नहीं है। 2019 में भी लोकसभा चुनाव के दौरान आयोग और ममता के बीच तीखी जंग हुई थी। यह जंग तब छिड़ी थी, जब चुनाव आयोग ने राज्य के सीनियर अधिकारियों का तबादला कर दिया था। ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर पूर्वाग्रह से काम करने का आरोप लगाते हुए कहा कि मोदी सरकार उस पर दबाव डाल रही है। सबसे दिलचस्प बात है कि 2014 आम चुनाव में भी ममता बनर्जी की चुनाव आयोग से ठन गई थी। तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी। तब भी लोकसभा चुनाव के दौरान ड्यूटी पर लगे पश्चिम बंगाल के आठ अधिकारियों का तबादला हुआ था। नाराज मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे मानने से इनकार कर दिया था। इस मामले में तब बड़ा विवाद हुआ था। मसला कोर्ट तक पहुंचा था और फैसला आयोग के पक्ष में आया था। आयोग के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि चुनाव के दौरान आयोग के पास असीमित अधिकार होता है। इसका मकसद यही है कि आयोग निष्पक्ष चुनाव करा सके।
पंचायत चुनाव के दौरान भी दोनों आमने-सामने हुए थे। ममता बनर्जी आयोग की ओर से निर्धारित पंचायत चुनाव की तारीख और इसमें केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती को मानने को तैयार नहीं थीं। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो फिर फैसला आयोग के पक्ष में आया। ममता बनर्जी से पहले पश्चिम बंगाल में वामदलों की सरकार का भी चुनाव आयोग से जबरदस्त टकराव हुआ था।
इस बार ममता बनर्जी के अलावा राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी आयोग विवाद में आया था और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने परिणाम में धांधली तक का आरोप लगा दिया था।
चुनाव आयोग ने ईवीएम की विश्वसनीयता और हिफाजत पर उठते सवालों के बीच दावा किया है कि ईवीएम से जुड़े तमाम सिस्टम को इस तरह बनाया गया है कि इससे किसी तरह की गड़बड़ी न हो। पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता भी बरती जाती है और अधिकतर मौकों पर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को भी इसके लूप में रखा जाता है। चुनाव आयोग के अनुसार ईवीएम रखने के लिए सभी चुनाव अधिकारियों को विशेष गोदाम बनाने को कहा जाता है। इस गोदाम में ईवीएम के अलावा और कोई सामान नहीं रखा जाता है। यह कैमरे पर सील होता है। साथ ही चुनाव शुरू होने से एक घंटे पहले हर बूथ पर सभी दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में ईवीएम से मॉक वोटिंग होती है, जिसमें कम से कम एक हजार वोट डाले जाते हैं। इस मॉक वोटिंग की रिकॉर्डिंग होती है। ईवीएम में किसी तरह की गड़बड़ी की शिकायत आने पर मशीन के डेटा को तब तक डिलीट नहीं किया जाता है, जब तक कि जांच का काम पूरा न हो जाए। आयोग के अनुसार चुनाव के बाद भी कम से कम छह महीने तक ईवीएम उसी निर्वाचन अधिकारी की देखरेख में रहती है, जहां चुनाव के दौरान उसका उपयोग हुआ रहता है। अगर इस दौरान कोई शिकायत नहीं मिली, तो फिर उसका यूज दूसरे चुनावों में हो सकता है। मशीन में काम आने वाली बैटरी का इस्तेमाल सिर्फ एक बार ही होता है। ऐसी शिकायतें मिलीं कि कई बार ईवीएम की बैटरी चुनाव के दौरान ही डिस्चार्ज हो जा रही थी। इसके बाद इसमें बदलाव हुआ।
पारदर्शिता पर रहता है जोर
चुनाव अधिकारी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के अलावा वोटरों को भी चुनाव से पहले ईवीएम के बारे में व्यावहारिक ज्ञान देते हैं, ताकि वोटिंग के वक्त उन्हें कोई असुविधा न हो। सभी सील ईवीएम पर एक पिंक स्लिप होती है, जिस पर एक नंबर दर्ज किया जाता है। इस स्लिप की एक कॉपी सभी राजनीतिक दलों को भेजी जाती है। सील खोलने के वक्त वे इसका मिलान कर सकते हैं। स्ट्रांग रूम से बूथ तक ईवीएम जाने की प्रक्रिया की सूचना राजनीतिक दलों को दी जाती है। वोटों की गिनती की तमाम प्रक्रिया की विडियो रिकॉर्डिंग की जाती है। चुनाव के दौरान जितने वोट पड़े, वोटों की गिनती के दौरान उतने ही वोट सामने आएं, इसका मिलान करना जरूरी होता है। एक भी वोट की गड़बड़ी मिलने पर तुरंत इसकी शिकायत दर्ज कराई जाती है। किसी भी दशा में चुनाव अधिकारी खुद अपने स्तर पर मशीन को ठीक करने की कोशिश नहीं करते हैं। चुनाव आयोग का कहना है कि ईवीएम पर लगने वाले आरोप पूरी तरह से गलत हैं। लेकिन विपक्षी दलों का तर्क है कि आयोग के एक्शन में पारदर्शिता नहीं है, और कहीं न कहीं उनके प्रति पूर्वाग्रह भी दिखता है।
सौजन्य – नवभारत टाइम्स