तीन बड़े सवाल .....
पहला - आखिर कानून को द्दष्टिगत रखते हुए न्याय के लिए किया गया कृत आरोपों के वृत में कैसे फंस गया ?
दूसरा – नीतिहीनता के भागीदार खुद को नियुक्तियों का हकदार बता रहे हैं, ये कितना उचित है ?
तीसरा – क्या कार्यवाही की नोंक पर खड़े होकर दोषारोप करना नीतिपरक है ?