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DevBhoomi Insider Desk
• Sat, 18 Sep 2021 10:50 am IST

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राज्य स्तरीय कार्यशाला में वन पंचायतों की मजबूती पर जोर


 गोपेश्वर: वन पंचायतों के सशक्तीकरण के साथ ही वन पंचायतो में आम जन के अधिकारों को लेकर आयोजित बैठक में विभिन्न कानूनों पर चर्चा करते वन पंचायतों की भूमिका पर आम जन व वन विभाग के सहयोग पर जोर दिया गया। राजीव गांधी फाउंडेशन के सहयोग से हिमाद प्रशिक्षण प्रसार केंद्र हड़ाकोटी में उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों के सरपंचों व सदस्यों के साथ आयोजित दो दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला में वन पंचायतों के इतिहास, उत्तराखंड में वन पंचायतों की मजबूती पर चर्चा की गई। अल्मोड़ा के ईश्वर जोशी ने कहा कि 1931 में ब्रिटिश सरकार ने डिस्ट्रिक शेडयूल एक्ट के तहत पंचायती वनों के लिए नियम जारी कर ग्रामीण समाज को वनों के प्रबंधन उपयोग और संरक्षण की पूर्ण स्वायत्ता दी थी। इस नियमावली के तहत ग्रामीणों के अधिकारों को सीमित कर दिया गया। हिमाद के संरक्षक डा.डीएस पुडीर ने कहा कि जब तक ग्रामीणों को उनके हक हकूकों को पूर्व की भांति नहीं दिया गया तब तक स्थानीय निवासियों का वनों प्रति रुझान नहीं रहेगा। डुमक के सरपंच प्रेम सिंह सनवाल ने कहा कि कई व्यक्तियों ने वन पंचयतों के लेकर प्रशासन के सम्मुख दावे पेश किए,लेकिन कुछ दावों को स्वीकार कर लिया गया तो अधिकतर दावों को बिना साक्ष्यों के आधार पर अस्वीकृत किया गया। हिमाद के सचिव उमाशंकर बिष्ट ने कहा कि वनों के प्रबंधन एवं स्वामित्व को लेकर किए गए बदलाव ने पर्वतीय निवासियों के जीवन और आजीविका पर सीधा असर डाला है। बैठक में मंडी परिषद के अध्यक्ष विनोद नेगी, जिला पंचायत सदस्य लक्ष्मण बिष्ट, कांग्रेस के जिलाध्यक्ष वीरेन्द रावत, सुभाष पंगरिया, देवेश्वरी देवी, नवज्योति के सचिव महानंद बिष्ट, चाईल्ड लाइन की जिला समन्वयक प्रभा रावत सहित अन्य ने अपने विचार व्यक्त किए