आजकल के समय में हर कोई अपनी संस्कृति को भूलता जा रहा हैं। जिसके चलते हम आजकल फैशन के नाम पर केवल जीन्स और टॉप को ही ज्यादा पसंद करते हैं। परन्तु क्या आप जानते हैं की गढ़वाली और कुमाऊंनी परंपरा में नाक की नथ क्यों पहनते हैं। तो चलिए देर किस बात की जानते हैं आखिर क्यों पहाड़ की नथ को पहनना आज एक परम्परा बन गया हैं। पहाड़ो की रानी कह जाने वाली देवो की देवभूमि अपने संस्कृति और पहनावे के लिए ज्यादा मशहूर मानी जाती हैं। तो आधे से ज्यादा लोग यह ही नहीं जानते हैं की वह नाक में नथ क्यों पहनते हैं। आपको बता दे,महिलाये अपने रंग रूप और वेशभूषा का काफी ध्यान देती हैं खासकर यह महिलाओ और अपनी एक पहचान दिलाने का काम करती हैं।
जाने इतिहास
जिस तरह से उत्तराखंड प्रदेश दो भाग गढ़वाल और कुमाऊं में बंटा हुआ है ठीक उसी तरह से उत्तराखंडी नथ भी मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं।वैसे तो पहाड़ी क्षेत्र में नथ ही मशहूर है लेकिन टिहरी की नथ उत्तराखंड में सबसे ज्यादा मशहूर है।ऐसा माना जाता है कि नथ का इतिहास तब से है जब से टिहरी में राजा रजवाड़ों का राज्य था और राजाओं की रानियां सोने की नथ पहनती थी।ऐसी मान्यता रही है कि परिवार जितना सम्पन्न होगा महिला की नथ उतनी ही भारी और बड़ी होगी। जैसे-जैसे परिवार में पैसे और धनःधान्य की वृद्धि होती थी नथ का वज़न भी बढ़ता जाता था। हालांकि बदलते वक्त के साथ युवतियों की पसंद भी बदल रही है और भारी नथ की जगह अब स्टाइलिश और छोटी नथों ने ले ली है ।लगभग दो दशक पहले तक नथ का वज़न तीन तोले से शुरु होकर पांच तोले और कभी कभी 6 तोला तक रहता था। नथ की गोलाई भी 35 से 40 सेमी तक रहती थी।