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• Sat, 20 Mar 2021 4:40 pm IST


शहरीकरण के कारण गौरैया पर मंडरा रहा खतरा


चमोली-घर के आंगन में फुदकती गौरेया गांवों में आज भी आसनी से दिख जाती है, लेकिन शहरों में यह चिड़िया कम ही दिखती है। शहरीकरण के कारण इस चिड़िया पर संकट मंडरा रहा है। अगर गौरेया चिड़िया के संरक्षण के लिए पहल नहीं की गई तो यह विलुप्त होने वाले पक्षियों की श्रेणी में शामिल हो जाएगी। गांव के कच्चे मकानों और घर के आसपास घोंसला बनाकर रहने वाली गौरेया निर्जन घरों में बसेरा नहीं करती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि शहरों में पक्के मकान होते हैं और घरों के आसपास पेड़ भी कम होते हैं जिससे गौरेया के लिए शहरों का वातावरण अनुकूल नहीं होता है, इसलिए वह शहरों में कम ही नजर आती है। गांव में लोग भी गौरेया को दाना देते रहते हैं, जिससे वह लोगों के आसपास ही रहती है। केदारनाथ वन प्रभाग के डीएफओ अमित कंवर का कहना है कि मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन भी गौरेया के लिए बहुत हानिकारक माने गए हैं। गौरेया के संरक्षण के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए तो वह विलुप्त श्रेणी में शामिल हो जाएगी। लकड़ी के छोटे बॉक्स बनाकर घर या आसपास के पेड़ों पर रख सकते हैं जिससे जहां यह चिड़िया अपना घोंसला बना सकती है और इसका संरक्षण हो सकता है।