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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 14 Jan 2022 7:00 pm IST


देवभूमि में घुघुतिया त्योहार का है विशेष महत्व, उत्तरैणी त्यार में कौवों को खिलाते हैं पकवान


 उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मकर संक्रांति को 'घुघुतिया' के तौर पर धूमधाम से मनाया जाता है. एक दिन पहले आटे को गुड़ मिले पानी में गूंथा जाता है. देवनागरी लिपी के 'चार', ढाल-तलवार और डमरू सरीखे कई तरह की कलाकृतियां बनाकर पकवान बनाए जाते हैं. इन सबको एक संतरे समेत माला में पिरोया जाता है. इसे पहनकर बच्चे अगले दिन घुघुतिया पर सुबह नहा-धोकर कौओं को खाने का न्योता देते हैं. देहरादून: उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मकर संक्रांति को 'घुघुतिया' के तौर पर धूमधाम से मनाया जाता है. एक दिन पहले आटे को गुड़ मिले पानी में गूंथा जाता है. देवनागरी लिपी के 'चार', ढाल-तलवार और डमरू सरीखे कई तरह की कलाकृतियां बनाकर पकवान बनाए जाते हैं. इन सबको एक संतरे समेत माला में पिरोया जाता है. इसे पहनकर बच्चे अगले दिन घुघुतिया पर सुबह नहा-धोकर कौओं को खाने का न्योता देते हैं। उत्तराखंड में हर तीज-त्योहार का अपना अलग ही उल्लास है। हम ऐसे ही अनूठे पर्व 'मकरैंण' से आपका परिचय करा रहे हैं. यह पर्व गढ़वाल, कुमाऊं व जौनसार में अलग-अलग अंदाज में मनाया जाता है.सबसे अहम बात है मकर संक्रांति से जीवन के लोक पक्ष का जुड़ा होना. यही वजह है कि कोई इसे उत्तरायणी, कोई मकरैणी (मकरैंण), कोई खिचड़ी संगरांद तो कोई गिंदी कौथिग के रूप में मनाता है. गढ़वाल में इसके यही रूप हैं. कुमाऊं में घुघुतिया और जौनसार में मकरैंण को मरोज त्योहार के रूप में मनाया जाता है.