"मुझे मेरा रावण ऐसा चाहिए, जिसमें सिर्फ शक्ति ही न हो, बल्कि भक्ति भी हो। वह विद्वान है, तो उसके चेहरे पर तेज हो। अभिमान हो और मुझे सिर्फ तुम्हारी चाल से ही यह विश्वास हो गया कि तुम इस किरदार के लिए सही हो।" जिस घड़ी रामानंद ने यह कह कर अचंभे में पड़े अरविंद त्रिवेदी को गले लगाया था बस उस वक्त से अरविंद अरविंद त्रिवेदी नहीं रहे लंकापति रावण हो गए। जानिए क्या थी ये पूरी कहानी....