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DevBhoomi Insider Desk
• Wed, 2 Nov 2022 8:00 am IST


कब है बैकुंठ चतुर्दशी, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि


हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा से दो दिन पहले पड़ता है। यह एक ऐसा पर्व है जिसमें भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव की विधिवत पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि इस दिन पूजा करने के लिए बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। जानिए बैकुंठ चतुर्दशी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

बैकुंठ चतुर्दशी तिथि
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 6 नवंबर रविवार शाम 4 बजकर 28 मिनट से। 
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि समाप्त: 7 नवंबर सोमवार शाम 4 बजकर 15 मिनट। 
तिथि- 6 नवंबर, रविवार

बैकुंठ चतुर्दशी शुभ मुहूर्त
निशिताकाल पूजा मुहूर्त- 06 नवंबर को रात 11 बजकर 39 मिनट से 07 नवंबर सुबह 12 बजकर 37 मिनट तक। 
सुबह पूजा का मुहूर्त - 06 नवंबर पूर्वान्ह 11 बजकर 48 मिनट से दोपहर 12 बजकर 32 मिनट तक। 

बैकुंठ चतुर्दशी महत्व
हिंदू धर्म में बैकुंठ चतुर्दशी का काफी अधिक महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ शिव जी की पूजा की जाती है। शिव पुराण के अनुसार, कार्तिक चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु विधिवत तरीके से शिव जी की पूजा करने के लिए वाराणसी गए थे। जहां पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए श्री हरि ने एक हजार कमल अर्पित किए थे। लेकिन कमल चढ़ाते समय हजारवां कमल गायब था। ऐसे में विष्णु जी ने अपनी पूजा को पूरा करने के लिए अपनी आंख को कमल मानकर भगवान शिव को अर्पित कर दिया था। ऐसे में भगवान शिव अति प्रसन्न हुए और उन्होंने श्री हरि की केवल आंख ही नहीं वापस की बल्कि उन्हें सुदर्शन चक्र का उपहार भी दिया। जो आने वाले समय में सबसे शक्तिशाली शस्त्रों में से एक माना जाता है।

बैकुंठ चतुर्दशी पूजा विधि
- इस दिन सुबह उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। 
- इसके बाद भगवान विष्णु को श्रृद्धा के साथ 108 या जितने कमल के फूल मिल जाएं वो अर्पित करें।
- भगवान शिव को भी कमल के फूल के साथ सफेद चंदन, भोग आदि लगाएं।
- घी का दीपक और धूप जलाने के बाद शिव जी और विष्णु जी के नामों का अच्छी तरह से उच्चारण करें।
- नाम का जाप करने के बाद इस मंत्र का जाप करें-विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्। वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।
- अंत में विधिवत आरती करने के बाद भूल चूक के लिए माफी मांग लें।