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DevBhoomi Insider Desk
• Tue, 18 Oct 2022 7:00 am IST


22 अक्टूबर को रखा जाएगा शनि प्रदोष व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, व्रत का महत्व और कथा


प्रति माह भवगान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखा जाता है। अक्टूबर महीने में यह व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाएगा। इस बार यह व्रत शनिवार के दिन रखा जाएगा। जिस वजह से इसे शनि प्रदोष व्रत के नाम से वर्णित किया गया है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की प्रार्थना करने और उपवास का पालन करने से भक्तों के सभी पाप दूर हो जाते हैं और उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस विशेष दिन पर त्रिपुष्कर योग का निर्माण हो रहा है। जिसके कारण इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ गया है। आइए जानते हैं शनि प्रदोष व्रत तिथि और महत्व।

शनि प्रदोष व्रत मुहूर्त 
कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ: 22 अक्टूबर शनिवार को शाम 06:01 बजे से। 
कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि समाप्त: 23 अक्टूबर 2022 को शाम 06:02 तक। 
प्रदोष व्रत तिथि: 22 अक्टूबर। 
पूजा का शुभ मुहूर्त: 22 अक्टूबर शाम 06:01 से रात 08:16 तक। 
त्रिपुष्कर योग: 22 अक्टूबर दोपहर 01:51 मिनट से शाम 06:01 बजे तक। 

शनि प्रदोष व्रत महत्व 
शास्त्रों में बताया गया है कि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना करने से भक्तों को विशेष लाभ मिलता है। साथ ही पारिवारिक जीवन में सदैव सुख-समृद्धि बनी रहती है। जो व्यक्ति सच्चे मन से इस व्रत को रखता है उसे संतोष, धन व अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

प्रदोष व्रत पूजा विधि 
प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-ध्यान के बाद भगवान शिव का स्मरण करें और इसके बाद पूजा स्थल की अच्छे से साफ-सफाई करें। इसके बाद प्रदोष व्रत का संकल्प लें और भगवान शिव की पूजा आरम्भ करें। भगवान शिव को जल अर्पित करें और सफेद फूल, माला, शमी, धतूरा, बेलपत्र, भांग, चीनी, शहद आदि भी चढाएं। चंदन और अक्षत अर्पित करना न भूलें। पूजा के बाद भगवान शिव को पुआ, हलवा या चने का भोग लगाएं और दीपक प्रज्वलित करें। इसके बाद शिव मंत्रों का शुद्ध उच्चारण करें और शिव चालीसा का पाठ करें। अंत में आरती करें और उसके बाद भोग लगाया हुआ प्रसाद सभी परिवार के सदस्यों में बांट दें।

शनि प्रदोष व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय में एक नगर में प्रसिद्ध व्यापारी रहता था। वो काफी संपन्न था और हमेशा दूसरों की मदद किया करता था। उसके दरवाजे पर जो भी मदद मांगने आ जाता, उसे वो खाली हाथ कभी नहीं लौटाता था। अपने परोपकारी स्वभाव की वजह से समाज में उसकी अच्छी खासी प्रतिष्ठा थी। लोग उसका काफी सम्मान करते थे। उनके घर में बस कमी थी तो संतान की, इस कारण वो व्यापारी और उसकी पत्नी काफी दुखी रहते थे। उन्होंने इसके लिए हर प्रकार के प्रयास किए, लेकिन उनको संतान प्राप्त नहीं हो सकी। एक बार दुखी मन से वो पति और पत्नी तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े। नगर के बाहर पहुंचने पर उन्हें एक पेड़ के नीचे बैठे साधु दिखे। साधु ध्यान की अवस्था में थे। वे दोनों साधु के पास गए और उनके सामने हाथ जोड़कर बैठ गए। जब साधु का ध्यान खत्म हुआ तो उन्होंने दोनों को देखा और उनसे कहा कि तुम्हारा जो भी दुख है, वो मैं अच्छी तरह से जानता हूं। मुझे मालूम है कि तुम अपने कुल को आगे बढ़ाने के लिए एक संतान चाहते हो। इसके लिए तुम दोनों को महादेव की आराधना करनी चाहिए और शनि प्रदोष व्रत विधि विधान से करना चाहिए। शिव कृपा से ही तुम्हें संतान प्राप्त होगी। इसके बाद साधु ने उन्हें शनि प्रदोष की व्रत विधि भी बताई। इसके बाद व्यापारी और उसकी पत्नी ने उस साधु को प्रणाम किया और तीर्थयात्रा पर चले गए। तीर्थयात्रा से लौटकर आने के बाद उन्होंने शनि प्रदोष का व्रत साधु के बताए अनुसार विधि से किया। कुछ समय तक व्रत करने के बाद एक दिन व्यापारी की पत्नी गर्भवती हो गई और उसने पुत्र रत्न को जन्म दिया। इस प्रकार शनि प्रदोष व्रत करने से उनके जीवन का खालीपन भर गया और परिवार में खुशियां आ गईं। माना जाता है कि जो भी नि:संतान दंपति इस व्रत को पूरी श्रद्धा से करता है, उसे संतान सुख जरूर मिलता है।