हिंदू धर्म में मां लक्ष्मी को धन की देवी कहा है। इन्हीं की कृपा से व्यक्ति को जीवन में धन-धान्य की प्राप्ति होती है। मां लक्ष्मी विष्णु प्रिया भी हैं। यही वजह है कि माता लक्ष्मी हमेशा भगवान विष्णु के साथ वैकुण्ठ धाम में विराजती हैं। भगवान विष्णु और धन की देवी लक्ष्मी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। एक तरफ श्रीहरि विष्णु को सृष्टि का पालनहार माना जाता है, तो वहीं देवी लक्ष्मी को सृष्टि का संचालक। मान्यता है कि जिस भी व्यक्ति पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा होती है, उसे संसार में समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। अक्सर धार्मिक तस्वीरों में देखा जाता है कि मां लक्ष्मी विष्णु जी के चरणों के निकट बैठती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि धन की देवी होने के बावजूद भी मां लक्ष्मी विष्णु जी चरणों के निकट क्यों बैठती हैं? आइए जानते हैं रोचक तथ्य के बारे में।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि एक बार देवर्षि नारद मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु के दर्शन के लिए पहुंचें। भगवान विष्णु निद्रा में थे तो नारद जी ने प्रतीक्षा करना ही उचित समझा। तभी नारद जी ने देखा कि मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के चरणों के पास बैठी हैं। ये देख नारद जी के मन में ये सवाल आया कि आखिर माता हमेशा श्री हरि के चरणों की तरफ ही क्यों बैठती हैं। अपने इस प्रश्न से बैचेन नारद जी खुद को रोक न सके और मां लक्ष्मी से उन्होंने अपना यह प्रश्न पूछ ही लिया। तब नारद जी के सवालों का जवाब देते हुए मां लक्ष्मी ने बताया कि स्त्री के हाथ में देव गुरु बृहस्पति का वास होता है और पुरुषों के पैर में दैत्य गुरु शुक्रचार्य का। ऐसे में जब मां लक्ष्मी श्री हरि के चरणों के निकट बैठती हैं, तो इससे शुभता का संचार होता है और धन का आगमन भी। यही वजह है कि मां लक्ष्मी न सिर्फ श्री हरि विष्णु के चरणों के पास विराजती हैं, बल्कि भगवान विष्णु के चरण भी दबाती हैं और जब एक स्त्री पुरुष के चरण स्पर्श करती है तो देव व दानव का मिलन होता है और इससे धनलाभ होता है।