उत्तरकाशी: जनपद की रवांई घाटी में देवलांग मेले की परपंरा सदियों पुरानी है. मान्यता है कि जब भगवान राम वनवास से अयोध्या वापस लौटे तो पहाड़ी राज्यों में इसकी सूचना ग्रामीणों को एक महीने बाद मिली. भगवान राम के वनवास से वापसी की खुशी में ही यहां देवलांग मेले की शुरुआत हुई. रात्रि के इस पर्व में बड़ी संख्या में ग्रामीण उमड़ते हैं.उत्तरकाशी में आयोजन होने वाले देवलांग मेले में एक लंबे देवदार वृक्ष को मंदिर प्रांगण में खड़ा किया जाता है. जिस पर साठी पानसाई थोक के लोग छोटी मशालों से आग लगाकर जलाते हैं. साथ ही राजा रघुनाथ (भगवान राम) की गाथा को गाते हैं. रातभर चलने वाले इस आयोजन में ग्रामीण तांदी व झुमेला नृत्य करते हैं. इस बार भी रात भर चले देवलांग मेले में लोगों का उत्साह चरम पर था.यमुना घाटी के बनाल क्षेत्र के लगभग 70 गांवों का यह पौराणिक मेला राजकीय मेला घोषित है, लेकिन इस पौराणिक सांस्कृतिक मेले में उत्तराखंड सरकार का कोई प्रतिनिधि नहीं पहुंचा. जिस पर लोगों ने नाराजगी व्यक्त की. हालांकि लोगों के भीतर अपनी पौराणिक संस्कृति के प्रति उत्साह रहा.