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DevBhoomi Insider Desk
• Wed, 15 Mar 2023 5:38 pm IST


Success Story: सुरेखा यादव ने फिर रचा इतिहास, पहले पैसेंजर ट्रेन, फिर डेक्‍कन क्‍वीन और अब वंदे भारत की मिली कमान


साल 1988 का वह दिन जब सुरेखा यादव ने देश की पहली ट्रेन डाइवर बन इतिहास रचा था। इसके बाद से लेकर आज तक वह नए-नए कीर्तिमान गढ़ रही हैं। उनसे पहले देश में कोई भी महिला ट्रेन ड्राइवर नहीं थी। इसके बाद 2011 में वह डेक्‍कन क्‍वीन चलाने वाली एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बन गईं। रानी लक्ष्‍मीबाई को अपना आदर्श मनाने वाली सुरेखा के हाथ में अब वंदे भारत की कमान आ गई है। अब सुरेखा यादव बंदे भारत चलाएंगी। जी हां अब वह वंदे भारत एक्‍सप्रेस ट्रेन चलाने वाली पहली महिला ड्राइवर भी बन गई हैं। बीते सोमवार को सुरेखा यादव ने सोलापुर स्‍टेशन और छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CSMT) के बीच इस सेमी-हाई स्‍पीड ट्रेन को दौड़ाया। बता दें कि सुरेखा यादव की गिनती उन चंद महिलाओं में होती है जिन्‍होंने पुरुषों के वर्चस्‍व वाले क्षेत्र में झंडा गाड़ा है। 
वह लाखों-लाख लड़कियों को इंस्‍पायर करती हैं।
450 किमी की दूरी तय करने के बाद जब 13 मार्च को प्‍लेटफॉर्म नंबर 8 पर वह पहली बार वंदे भारत एक्‍सप्रेस लेकर पहुंचीं तो हर देशवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। अपनी हर राइड के साथ सुरेखा ने आज बेटियों की उम्मीदों को एक नया आयाम दिया है। उन्‍हें उम्‍मीद दी है कि वे जो चाहें कर सकती हैं। साधारण किसान की इस बेटी का मानना है कि अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए और जो भी काम कर रह हो उसे पूरी ईमानदारी और निष्‍ठा से करना चाहिए। रेलवे में अब तक का उनका सफर यादगार रहा है।  महाराष्‍ट्र के सतारा में 2 सितंबर 1965 को जन्मी सुरेखा सोनाबाई और रामचंद्र भोसले की पांच संतानों में सबसे बड़ी हैं। उनके पिता रामचंद्र अब दुनिया में नहीं हैं। वह पेशे से किसान थे। सुरेखा की शुरुआती स्‍कूलिंग सेंट पॉल कॉन्‍वेंट हाईस्‍कूल से हुई।
स्‍कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्‍होंने वोकेशन ट्रेनिंग में एडमिशन लिया। इसके बाद  सतारा जिले के कराड में ही उन्‍होंने गवर्नमेंट पॉलिटेक्‍न‍िक से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्‍लोमा किया। वह मैथ्‍स में बीएससी  कंप्लीट करके बीएड कर टीचर बनाना चाहती थीं, लेकिन, रेलवे में नौकरी के अवसर ने आगे की पढ़ाई पर ब्रेक लगा दिया। साल 1988 में सुरेखा सेंट्रल रेलवे से जुड़ गईं। उन्‍होंने पाने करियर की शुरुआत बतौर ट्रेनी असिस्‍टेंट ड्राइवर की। इसके बाद साल 1989 में वह रेगुलर असिस्‍टेंट ड्राइवर बन गईं। उन्होंने सबसे जो ट्रेन चली वह थी लोकल गुड्स थी और उसका नंबर एल-50 था। 1998 तक वह परिपक्‍व गुड्स ट्रेन ड्राइवर बन चुकी थीं। इसके बाद अप्रैल 2000 में उन्होंने सेंट्रल रेलवे के लिए पहली 'लेडीज स्‍पेशल' लोकल ट्रेन चलाई। तत्‍कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने चार मेट्रो शहरों में इस ट्रेन की शुरुआत की थी।
8 मार्च 2011 सुरेखा के करियर में सबसे यादगार दिन था। अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस के दिन उन्होंने  डेक्‍कन क्‍वीन चलाने वाली एश‍िया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर  के तौर पर अपना नाम दर्ज कराया। वह ट्रेन को पुणे से सीएसटी तक लेकर गई थीं। सेंट्रल रेलवे के मुख्‍यालय सीएसटी पहुंचने पर उनका स्‍वागत मुंबई की तत्‍कालीन मेयर श्रद्धा जाधव ने किया था।   इसके बाद 2018 में सुरेखा मुंबई से पुणे पैसेंजर ट्रेन लेकर गई थीं। यह भी उनके यादगार सफर में से एक है। इस दौरान उनकी ट्रेन कई  मुश्किल मोड़ों से गुजरी थी। हालांकि ये यह पूरा रूट बेहद मनोरम था। इस ट्रेन में पूरा स्‍टाफ महिलाओं का था।  अब बीती 13 मार्च को महज 6.35 घंटों में सुरेखा वंदे भारत ट्रेन को सोलापुर से मुंबई लेकर पहुंचीं। यह दूरी 455 किमी थी। इस सफर के साथ रेलवे के इतिहास में किसी एक दिन में इतनी लंबी दूरी पर ट्रेन चलाने वाली वह पहली मह‍िला थीं। रेलवे में वह सबसे वरिष्‍ठ महिला ट्रेन ड्राइवर हैं। उनकी देखा देखी कई और महिलाएं भी लोको पायलट बनने की हिम्‍मत जुटाई और अब कई महिलाएं ट्रेन चला रही हैं।