Read in App


• Thu, 24 Oct 2024 4:30 pm IST


पीछे खिसकता जा रहा है पिंडारी ग्लेशियर, पर्यावरणविद चिंतित


बागेश्वर : ग्लेशियरों की यात्रा रोमांच जगाने के साथ-साथ प्रकृति से जुड़ने का माध्यम तो होती हैं लेकिन बढ़ते मानव दखल से ग्लेशियर संकट में हैं। ग्लेशियर पीछे की ओर खिसकते जा रहे हैं। पिंडारी ग्लेशियर भी साल-दर-साल पीछे खिसकता जा रहा है। इसको लेकर पर्यावरणविद चिंतित हैं। मशहूर छायाकार पद्मश्री अनूप साह बताते हैं कि 60 साल पहले जहां जीरो प्वाइंट हुआ करता था, अब वहां पर भुरभुरे पहाड़ दिखाई देते हैं। ग्लेशियर आधा किमी से अधिक पीछे जा चुका है। पिंडारी ग्लेशियर की ट्रैकिंग कर लौटे राज्य वन्यजीव परिषद के सदस्य अनूप साह (75) और उनके साथी छायाकार धीरेंद्र बिष्ट (63) ने संवाद न्यूज एजेंसी से अपनी यात्रा के अनुभव साझा किए। पद्मश्री साह बताया कि 60 साल पहले उन्होंने पहली बार 1964 में पिंडारी ग्लेशियर की यात्रा की थी, उस समय कपकोट से 115 किमी की पैदल दूरी तय करनी पड़ती थी। वर्तमान में खाती तक वाहन सुविधा होने से मात्र 31 किमी ही ट्रैकिंग करनी पड़ती है लेकिन पहले की अपेक्षा अब मार्ग अधिक खराब है। खाती से द्वाली तक भूस्खलन के कारण दूरी करीब तीन किमी बढ़ गई है। कहा कि ग्लेशियरों के पीछे खिसकने का असर वन्यजीव-जंतुओं पर भी पड़ रहा है। क्षेत्र में दिखने वाले थार, भरल, सांभर, घुरड़, काकड़, सैटायर, ट्रैंगोपान, मोनाल, पहाड़ी तीतर और सालम पंजा, सालम मिश्री, अतीस, कुटकी आदि का दिखना अब दुर्लभ हो गया है। हिम तेंदुआ और भालू जैसे जानवर अब चरवाहों की भेड़ों और घोड़ों को निवाला बनाने लगे हैं।