देहरादूनः यह किसी से छिपा नहीं है कि उत्तराखंड भौगोलिक और पर्यावरणीय लिहाज से अति संवेदनशील हैं। यहां की जमीन ग्लेशियरों के पीछे खिसकने से छूटे मलबे से बनी है। भूकंप के लिहाज से राज्य अतिसंवेदनशील जोन चार व पांच में हैं। बादल फटने की घटनाएं भी परेशानी का सबब बनी रहती हैं।भारी वर्षा में राज्य में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ जाती हैं। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान का अध्ययन बता रहा है की जब भी राज्य में वर्षा अधिक हुई है, भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं।वाडिया संस्थान के विज्ञानियों ने वर्ष 1880 से 2020 के बीच हुई भूस्खलन की घटनाओं का अध्ययन कर भारी वर्षा से इसका सीधा संबंध बताया है।वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डा विक्रम गुप्ता के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के रूप में वर्षा का मिजाज भी बदला है। कई बार कम समय के लिए ही सही, लेकिन तीव्र वेग से वर्षा हो रही है। इसके साथ ही बादल फटने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं।ऐसी स्थिति में पहले से कमजोर भूगर्भीय स्थिति वाले उत्तराखंड के पहाड़ तेजी से दरक रहे हैं। नैनीताल, मसूरी रोड, पिथौरागढ़, चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, यमुना वैली, अलकनंदा वैली, मंदाकिनी, भागीरथी नदी क्षेत्र, टिहरी (बूढाकेदार), नीलकंठ महादेव क्षेत्र (पौड़ी) भूस्खलन की दृष्टि से अधिक संवेदनशील हैं।