बेटे का शव देख मां को यकीन ही नहीं हुआ कि उसकी आंख का तारा अब इस दुनिया में नहीं रहा। वह बेटे को सोया हुआ ही मानती रही। कभी शव से लिपटकर तो कभी सिर गोद में रखकर उससे उठकर घर में चलने की बात कहती रही सुधीर की मां शीला देवी।
‘गोलू बेटा उठ और घर में आ जा...’ ये शब्द थे सुधीर की मां शीला देवी के। बेटे का शव घर पहुंचा तो शीला देवी को ऐसा सदमा लगा कि आंखों के आंसू भी बह न सके। अंदर ही अंदर बेटे के जाने का गम आखिर कैसे बर्दाश्त करती। दरवाजे पर सुधीर की अर्थी तैयार हो रही थी और आंगन में बेटे का शव रखा था जिसे मां एकटक निहार रही थी। उम्मीद थी बेटे के उठकर मां से गले लग जाने की और यह कहने की मां मैं आ गया। सुधीर के पिता राजू गौड़, बड़ा भाई चंदन, छोटा भाई अंकित बार-बार शीला देवी को समझाने की कोशिश कर रहे थे कि सुधीर अब उन्हें छोड़कर जा चुका है लेकिन एक मां का दिल कैसे यकीन करता कि उसके जिगर का टुकड़ा कैसे छोड़कर जा सकता है। बेटे के शव को गोद में लेकर शीला देवी यही कहती रहीं कि बेटा तू अकेला चला गया, मुझे लेकर क्यों नहीं गया।