आज से पितृ-पक्ष शुरु हो गए हैं। इन 15 दिनों में परिवार अपने पितरों के तर्पण और उनकी आत्मा की शांति के लिए विधान करता है। विसंगति यह भी है कि बड़ी संख्या में बुजुर्गों को अपनों ने ही बेसहारा कर दिया है। कई बुजुर्गों हैं, जो अपनों के तिरस्कार के कारण वृद्धाश्रमों में रहने को मजबूर हैं।
दिल्ली हो या यूपी या देश का कोई अन्य राज्य वहां के वृद्धाश्रमों में आपको अपनों की तलाश करती निगाहें जरुर मिलेंगी। नांगलोई के एक वृद्धाश्रम में रह रहे झुकी कमर, कांपते हाथ और चेहरों की झुर्रियों में लाचारी छुपाने की नाकाम कोशिश करतीं रूपमती की आंखें अपने जवानी के दिनों को याद कर नम हो जाती हैं।
करीब एक साल पहले केरल के करुणाकरन बेटे के साथ दिल्ली आए थे। बताते हैं कि वह पहाड़गंज के एक होटल में ठहरे थे। उनके बेटे को नोएडा में किसी से साढ़े सात लाख रुपये लेने थे। वह पैसे लेने की बात कहकर चला गया, लेकिन आज तक नहीं लौटा। रमावती के परिवार में बेटे-बेटियों का भरा पूरा परिवार है। उनके नाती पोते भी हैं। सब हंसी खुशी रहते हैं लेकिन उनको रखने के लिए किसी के यहां जगह नहीं है।
नांगलोई के जय मां दुर्गा वृद्धाश्रम में रहने वाले अनिल के परिवार में बेटा-बहू हैं। लेकिन परिवार में उनके साथ सही बर्ताव नहीं होता था। इस कारण उन्होंने वृद्धाश्रम में आश्रय लेना पड़ा।