नई दिल्ली: चंद्रमा पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग का शुक्रवार (1 सितंबर) को 9वां दिन है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 31 अगस्त को जानकारी देते हुए बताया कि चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर पर लगे इंस्ट्रूमेंट ऑफ लूनर सीस्मिक एक्टिविटी (ILSA) पेलोड ने चांद की सतह पर भूकंप की प्राकृतिक घटना को रिकॉर्ड किया है। ये भूकंप 26 अगस्त को आया था। इसके अलावा भूकंप के सोर्स की जांच जारी है।
एक सोशल मीडिया पोस्ट में ISRO ने बताया कि चंद्रयान-3 के लैंडर पर लगा ILSA पेलोड माइक्रो इलेक्ट्रो मेकैनिकल सिस्टम्स (MEMS) टेक्नोलॉजी पर आधारित है। ये पहली बार है, जब चांद की सतह पर ऐसा इंस्ट्रूमेंट भेजा गया है। रोवर और अन्य पेलोड के चलने से चांद पर होने वाने कंपन को इस इंस्ट्रूमेंट ने रिकॉर्ड किया है।
कैसे काम करता है ILSA पेलोड?
ILSA में छह हाई-सेंसिटिविटी एक्सेलोमीटर्स का एक क्लस्टर है। इन एक्सेलोमीटर्स को सिलिकॉन माइक्रोमशीनिंग प्रोसेस की सहायता से भारत में ही बनाया गया है। इसके कोर सेंसिंग एलिमेंट में स्प्रिंग मास सिस्टम है, जिसमें कोम्ब-स्ट्रक्चर वाले इलेक्ट्रोड लगे हैं। बाहरी कंपन के कारण ILSA के स्प्रिंग में हलचल होती है, जिससे उसके इलेक्ट्रिकल चार्ज को स्टोर करने की कैपेसिटी में बदलाव होता है। ये चार्ज वोल्टेज में परिवर्तित होता है।
ILSA का प्रमुख
उद्देश्य है- प्राकृतिक भूकंप, लैंडर या रोवर के इम्पैक्ट या किसी और आर्टिफिशियल इवेंट के कारण चंद्रमा की
सतह पर उठने वाले कंपन को मापना। रोवर के चलने से 25 अगस्त को वाइब्रेशन रिकॉर्ड हुए
थे और इसके बाद 26 अगस्त को भी
वाइब्रेशन रिकॉर्ड किए गए। हालांकि, ये प्राकृतिक नजर आए। इस वाइब्रेशन के पीछे क्या कारण था, उसकी जांच जारी
है।