पिछले दिनों चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) ने अपनी उपलब्धियों व ऐतिहासिक अनुभव पर एक प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सत्ता पर पकड़ और मजबूत बना दी। इस तीसरे प्रस्ताव में सबसे अहम यह दिखाना है कि शी ने अब छठे पूर्ण सत्र में सभी असहमतिपूर्ण आवाजों को दबा दिया है। लेकिन सच्चाई यह है कि पार्टी की अंदरूनी लड़ाई बढ़ने के चलते शी ने समझौता किया है। हांगकांग पोस्ट ने एक रिपोर्ट में बताया है कि सीपीसी के सामने आने वाले संकट को उच्च स्तर पर पैदा हो रही विरोध की आवाजों को दबाया नहीं जा सकता है। नेशनल इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर ली यूटन के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि यदि शी जिनपिंग अगले साल दोबारा राष्ट्रपति चुने जाते हैं तो भी राजनीतिक संघर्ष खत्म नहीं होगा, बल्कि यह और भी स्याह रूप में उभरेगा।