प्रत्येक वर्ष मार्गशीष यानी अगहन मास की पूर्णिमा तिथि वाले दिन अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाती है। ये दिन मां पार्वती के अन्नपूर्णा स्वरूप को समर्पित है। इस दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा करने से संकट के समय में भी कभी अन्न की कमी नहीं होती है। मां अन्नपूर्णा से ही धरती पर अन्न की पूर्ति होती है। इसलिए अन्नपूर्णा माता का स्थान रसोई घर में माना जाता है। अन्नपूर्णा जयंती के दिन मां पार्वती समस्त सृष्टि का भरण-पोषण करने वाली देवी अन्नपूर्णा के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुई थीं। मान्यता है कि मां अन्नपूर्णा की साधना और भोजन का सम्मान करने वाले व्यक्ति को कभी भूखा नहीं रहना पड़ता है। इसलिए इस दिन घर की महिलाओं या अन्न का अपमान नहीं करना चाहिए। ऐसे में चलिए जानते हैं अन्नपूर्णा जयंती का महत्व समय और पूजा विधि...
अन्नपूर्णा जयंती तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 7 दिसंबर को सुबह 8 बजकर 01 मिनट से होगी। अगले दिन यानी 8 दिसंबर को सुबह 9 बजकर 37 मिनट पर पूर्णिमा तिथि की समाप्ति है। ऐसे में इस साल अन्नपूर्णा जयंती 8 दिसंबर को मनाई जाएगी।
पूजन विधि
- अन्नपूर्णा जयंती के दिन प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूरे घर और रसोई, चूल्हे की अच्छे से साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें।
- खाने के चूल्हे पर हल्दी, कुमकुम, चावल पुष्प अर्पित करें। धूप-दीप प्रज्वलित करें।
- इसके साथ ही माता पार्वती और शिव जी की पूजा करें। माता पार्वती ही अन्नपूर्णा देवी हैं।
- विधि पूर्वक पूजा करने के बाद माता से प्रार्थना करें कि हमारे घर में हमेशा अन्न के भंडारे भरे रहें। मां अन्नपूर्णा पूरे परिवार एवं समस्त प्राणियों पर अपनी कृपा बनाए रखें।
- इस दिन अन्न का दान करें और जरूरतमंदो को भोजन करवाएं।
अन्नपूर्णा जयंती का महत्व
कहा जाता है कि जिस घर में मां अन्नपूर्णा की आशीर्वाद रहता है, वहां किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता है। मां अन्नपूर्णा की कृपा से अन्न के भंडार भरे रहते हैं। इसलिए अन्नपूर्णा जयंती के दिन मां अन्नपूर्णा का आशीर्वाद पाने के लिए पूजा करनी चाहिए। इस दिन प्रातः उठकर मां अन्नपूर्णा की पूजा करनी चाहिए।