जब वह बोलती हैं तो मानों कानों में शहद घुल जाता है। उनकी आवाज हर किसी को आकर्षित कर लेती हैं। पारंपरिक साड़ी, गले में मोतियों की माला। माथे पर बिंदी। मांग में सिंदूर। उम्र और पहनावा-ओढ़ावा देखकर कोई भी नहीं कह सकता है कि वह क्राइम एक्सपर्ट हैं और शातिर अपराधियों की कुंडली वह मिनटों में खोल देती हैं। इनका नाम रुक्मणि कृष्णमूर्ति है। रुक्मिणी अब 72 साल की हो चुकी हैं। उनका नाम देश के जाने-माने क्राइम इंवेस्टिगेटर्स में शामिल है। वह देश की पहली महिला फॉरेंसिक साइंटिस्ट हैं। पहली प्राइवेट फॉरेंसिक लैब की संस्थापक होने की उपलब्धि भी उन्ही के नाम है। उनकी सादगी महिलाओं को इस फील्ड में करियर बनाने के लिए इंस्पायर करती है।
रुक्मणि कृष्णमूर्ति ने फॉरेंसिक जांच के क्षेत्र में मर्दाना दबदबे को चुनौती दी है। इस क्षेत्र में उन्होंने न सिर्फ अलग मुकाम हासिल किया है बल्कि अपनी विशेषज्ञता का लोहा भी मनवाया है। रुक्मिणी ने कई बड़े केस सुलझाएं हैं। इनमें 26/11 का मुंबई आतंकी हमला, 1993 मुंबई बम ब्लास्ट, तेलगी स्टैंप घोटाला, नागपुर नक्सली मर्डर केस, किंगफिशर एयरलाइन घोटाला आदि शामिल हैं। इसके साथ ही उन्होंने न जाने कितने दहेज हत्या, रेप और मर्डर के केस भी अपनी काबिलियत के दम पर सुलझाएं हैं।
रुक्मिणी ने करीब 50 साल पहले फॉरेंसिक्स में अपने करियर की शुरुआत की थी। इसके लिए उन्होंने एनालिटिकल केमेस्ट्री में स्नातकोत्तर कंप्लीट किया। फिर पीएचडी कीपोस्ट ग्रेजुएशन इसके बाद फॉरेंसिक की दुनिया में वह धीरे-धीरे आगे बढ़ती गईं। बाद में वह महाराष्ट्र के फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरीज की डायरेक्टर बनीं। एक इंटरव्यू में कृष्णमूर्ति ने बताया कि साल 1993 में हुए ब्लास्ट की जांच के नतीजे इंटरपोल से मेल खाए थे। जब वे महाराष्ट्र सरकार से रिटायर हो गईं तो उन्होंने अपनी फोरेंसिक लैब खोल दी जिसका नाम उन्होंने हेलिक एडवाइजरी रखा। यह देश की पहली ऐसी लैब थी।
कृष्णमूर्ति का कहना है कि सरकारी फॉरेंसिक लैब्स केवल पुलिस और अन्य जांच एजेंसियों से ही केस लेती हैं, लेकिन, वह सुनिश्चित करना चाहती थीं कि कंपनियां और लोग पुलिस से संपर्क किए बिना फॉरेंसिक सर्विसेज का लाभ ले सकें और जरूरत पड़ने पर अपने केस की पड़ताल करवा सकें। फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरीज निदेशालय की डायरेक्टर रहते हुए रुक्मणी ने 2002 से 2008 तक महाराष्ट्र के मुंबई, नागपुर, पुणे, औरंगाबाद, नासिक और अमरावती फॉरेंसिक लैब का निर्माण कराया।
इन लैब्स में डीएनए, साइबर फॉरेंसिक, स्पीकर आइडेंटिफिकेशन से लेकर टेप ऑथेंटिकेशन, लाई डिक्टर, नार्को एनालिसिस और ब्रेन सिग्नेचर तक की सुविधा थी। रुक्मणि कृष्णमूर्ति के 110 रिसर्च पेपर भी पब्लिश हो चुके हैं। साथ ही वे सभी केंद्रीय फॉरेंसिक समितियों की सदस्य रही हैं। उन्हें फॉरेंसिक्स के क्षेत्र में 12 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।