जिंदगी की जंग में जीत उसी के हिस्से में आती है जो चुनौतियों का सामना करता है। रोशन नागर भी ऐसे हो लोगों में गिने जाते हैं जिन्होंने हर चुनौती का डटकर सामना किया और आत्मनिर्भर बने। रोशन ने बचपन में ही एक हादसे में दोनों हाथ और एक पैर गंवा दिए थे। छोटी सी उम्र में हुए इस हादसे ने उन्हें और उनके परिवार को अंदर तक हिला दिया था। हालांकि, रोशन ने हिम्मत नहीं हारी और पढ़ाई लिखाई जारी रखी। रोशन ने अपने कंधों पर कलम बांधकर लिखना सीखा। आज वे कई लोगों को ट्रेनिंग और मदद मुहैया कराते हैं। उनकी कहानी आज लोगों के लिए प्रेरणा का काम करती है।
करंट लगने से हुआ हादसा
रोशन नागर बचपन में एकदम सामान्य थे। हंसमुख और शरारती। वे कहते हैं कि एक दिन वह अपने घर की छत पर बैठे थे तभी अचानक नीले रंग की एक पतंग उनके पास से गुजरी तो वे उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़े। उन्होंने उस पतंग को पकड़ने के लिए एक बांस की छड़ी उठाई, लेकिन, दुर्भाग्य से वह छोटी पड़ गई, तभी उन्होंने पास में ही पड़ी लोहे की रॉड को उठा लिया और पतंग को पकड़ने के लिए ऊपर उठा दिया जो उनके घर के ऊपर से गुजरने वाले 36 केवी हाई-टेंशन वायर के संपर्क में आ गई और एक सेकेंड में वह जमीन पर गिर पड़े। वे कहते हैं कि इसके बाद जब उन्हें होश आया तो उन्होंने खुद को अस्पताल के वेड पर पाया। उन्होंने बताया कि बिजली के झटके ने उनकी ब्लड वेसेल्स को नष्ट कर दिया था। डॉक्टरों ने अगले दो दिनों तक रक्त वाहिकाओं में खून की सप्लाई शुरू करने का भरकस प्रयास किया लेकिन, नाकाम रहे।
दोस्त की सलाह आई काम
इसके बाद रोशन की जिंदगी बचाने के लिए डॉक्टरों के पास उनके दोनों हाथ और एक पैर काटने सिवा कोई रास्ता नहीं बचा। इसके बाद भी डॉक्टरों को यकीन नहीं था कि वह बच पाएंगे। हालांकि, दोनों हाथ और एक पैर कटने के बाद धीरे-धीरे रोशन की स्थिति में सुधार होने लगा और कुछ समय बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इसके बाद अगले छह महीनों तक उनके घावों का घर पर ही इलाज होता रहा। जब उनके घावों पर मरहम लगाया जाता था तो वह इतनी जोर से चिल्लाते थे कि परिवार वालों को ही नहीं बल्कि पूरे मोहल्ले को पता चल जाता था। दरअसल उन्हें ड्रेसिंग के दौरान काफी दर्द होता था। यह केवल रोशन के शारीरिक घाव का हिस्सा था। जीवन की असली चुनौतियां और संघर्ष अभी बाकी थे। रोशन बताते हैं कि एक बार किसी ने उनसे सवाल कर लिया कि, 'अब तुम्हें पूरी जिंदगी ऐसे ही रहना है, अब तुम क्या करोगे?' इस पर उन्होंने विचार किया। इस बीच उनके एक दोस्त ने उन्हें सलाह दी कि वह बचे हुए चार इंच के बाजू में कलम पकड़कर लिखने की प्रैक्टिस शुरू करें। उन्हें यह आइडिया पसंद आया और उन्होंने प्रैक्टिस शुरू कर दी। शुरू में तो वह पांच मिनट में थक जाते थे, लेकिन, धीरे-धीरे वे तीन घंटे तक लिखने लगे।
बजट से कोसों दूर थे इलेक्ट्रॉनिक हाथ
इसके बाद रोशन ने बिना किसी की मदद के 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा पास की। यह उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। इसके बाद उन्होंने अपना ग्रेजुएशन भी पूरा कर लिया और अब उन्हें अपने करियर की चिंता सताने लगी। उनके दिमाग में सबसे पहली बात 'शारीरिक रूप से विकलांग' श्रेणी के तहत सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने की आई। लेकिन, दुर्भाग्य से उनकी अक्षमता का स्तर काफी अधिक होने की वजह से उन्हें अपात्र घोषित कर दिया गया। हालांकि वे यही नहीं रुके और उन्होंने प्राइवेट सेक्टर में काम तलाश लिया लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी। किसी दूसरे की मदद न लेनी पड़े इसलिए उन्होंने मल-मूत्र त्यागने पर भी नियंत्रण रखने की प्रैक्टिस कर ली। वह 5-6 घंटे तक इसे रोक लेते हैं। फिर उन्हें इलेक्ट्रॉनिक हाथों की जरूरत महसूस हुई। लेकिन, इनकी कीमत करीब 13 लाख रुपये थी जो उनके बजट से कोसों दूर थी।
शुरू किया खुद एक कारोबार
रोशन ने चैरिटेबल ट्रस्टों और संगठनों से मदद पैसा जुटाना शुरू किया, लेकिन, पर्याप्त फंड नहीं इकट्ठा हो पा रहा था। अंत में राजस्थान के एक एनजीओ ने उन्हें इसके लिए पूरी राशि दान कर दी। इलेक्ट्रॉनिक हाथ लगने के बाद रोशन ने अपना निजी संस्थान खोल लिया और युवाओं को अलग-अलग सॉफ्टवेयर प्रोग्राम पढ़ाने लगे। इसके बाद उन्हें बड़ौदा राजस्थान क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में सहायक प्रबंधक के रूप में नौकरी भी मिल गई। इसके अलावा रोशन एक सफल लेखक और प्रेरक वक्ता भी बन गए। राजस्थान सरकार और कई अन्य संस्थाओं द्वारा उन्हें प्रेरक कामों के लिए सम्मानित किया जा चुका है।