बाघों के चलते कॉर्बेट नेशनल पार्क की अपनी अलग पहचान है। बाघों के बेहतर संरक्षण का ही नतीजा है कि यहां बाघों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 2018 में गणना के अनुसार, उत्तराखंड में 442 बाघ रिकॉर्ड किए गए थे जिनमें 325 बाघ कॉर्बेट लैंडस्केप में थे।
चार साल बाद फिर एनटीसीए की गणना हुई है जिसकी रिपोर्ट बाघ दिवस पर शुक्रवार को साझा की जाएगी। उम्मीद है कि इसमें भी बाघों की संख्या में वृद्धि होगी। हालांकि बाघों की संख्या में वृद्धि होने के साथ वन विभाग की चुनौतियां भी बढ़ रही हैं और मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामले भी लगातार सामने आ रहे हैं।
अमूमन बाघ इलाका बांटकर रहते हैं। कुछ सालों से प्रदेश में बाघों के व्यवहार में बदलाव नजर आ रहा है। कॉर्बेट के सर्पदुली, रामनगर वन प्रभाग के कोसी रेंज और अल्मोड़ा वन प्रभाग के मोहान रेंज के बफर जोन में एक बाघिन और तीन बाघ देखे जा रहे हैं जो एक साथ शिकार करते हैं जबकि विशेषज्ञों के मुताबिक दो साल की उम्र से बाघ अलग हो जाते हैं।
बाघों के बदले व्यवहार ने विशेषज्ञों को चिंतन में डाल दिया है। अध्ययन बताते हैं कि एक बाघ का इलाका कम से कम 20 किलोमीटर तक होता है लेकिन रामनगर वन प्रभाग के फतेहपुर रेंज और कॉर्बेट में बाघों के आसपास रहने के मामले चौंकाते हैं इससे खतरा भी बढ़ रहा है।