उत्तराखंड में मॉनसून की दस्तक के बाद से ही तमाम गांव डर के साये में जीने को मजबूर हो जाते हैं. प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण भूकंप आना, भूस्खलन और आपदा जैसे हालात बनना आम बात है. लिहाजा, संवेदनशील क्षेत्रों में बसे लोगों को मॉनसून में आने वाली आपदा का डर सताने लगता है. यही नहीं, लंबे समय से सैकड़ों परिवारों के विस्थापन की मांग भी उठती रही है. लेकिन अभी तक इनका पुनर्वास नहीं हो पाया है. ऐसे में प्रदेश में संवेदनशील क्षेत्रों पर बसे परिवारों की स्थिति विकट है.उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा जैसे हालात बनना आम बात है. लेकिन मॉनसून सीजन के दौरान आपदा की स्थिति बनना आम बात हो जाती है. इसके साथ ही प्रदेश में आए दिन अतिवृष्टि, भू-कटाव, भूस्खलन और भूकंप जैसी आपदाएं आती रहती है. इस कारण प्रदेश में ऐसे गांवों की संख्या भी बढ़ती जा रही है जिन क्षेत्रों में आपदा का खौफ सताता रहता है.
पिछले साल तक आपदा प्रभावित गावों की संख्या बढ़कर 411 तक पहुंच गई थी. ऐसे में आने वाले ऐसे गावों की संख्या और अधिक बढ़ने की संभावना है.आपदा विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, उधमसिंह नगर जिले का 1 गांव, देहरादून जिले में 2 गांव, नैनीताल जिले में 6, अल्मोड़ा जिले के 9 गांव, चंपावत जिले के 10, रुद्रप्रयाग जिले के 14, पौड़ी गढ़वाल जिले के 26, टिहरी जिले के 33 गांव, बागेश्वर जिले के 58, चमोली के 61, उत्तरकाशी जिले के 62 गांव के साथ ही पिथौरागढ़ जिले के सबसे ज्यादा 129 गांव खतरे के जद में है. साथ ही इनका पुनर्वास करने की दरकार है. लेकिन बीते कई सालों से इन गांव का पुनर्वास नहीं हो पाया है. इसकी मुख्य वजह बजट है. इनका पुनर्वास करने में सरकारी खजाने पर अरबों रुपए का भार पड़ेगा.