हमने जंगलों को काटकर अपने लिए सैरगाह बनाया तो बाघ और गुलदार के इलाके कम हुए, शिकार की भी कमी हुई तो वे जंगल छोड़कर रिहायशी इलाकों में आ रहे हैं। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि तेंदुओं का आबादी वाले क्षेत्र में आना जंगल में उनके खाने की कमी को भी दर्शाता है। वहीं अनजाने में गांवों तक सड़कों के नाम पर उनके आवास को नुकसान पहुंचा रहे हैं। जिले में डेढ़ सालों में तेंदुओं ने आबादी वाले क्षेत्रों का रुख कर 12 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतारा था। ये घटना पिथौरागढ़, देवलथल, कनालीछीना, बेड़ीनाग, गंगोलीहाट में हुई। इसके बाद तीन शिकारियों ने सात तेंदुओं का मौत के घाट उतारा था। इससे स्पष्ट है जंगलों में कम होता भोजन तेंदुओं को आसान शिकार की तलाश में आबादी वाले क्षेत्रों का रुख करने के मजबूर करता है। चेन्नई के पारिस्थितिकी विशेषज्ञ रामनारायण का कहना है कि मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं इस बात की ओर इशारा कर रहीं हैं कि जंगल में तेंदुओं का भोजन कम हुआ है। अगर जंगल में पर्याप्त मात्रा में भोजन या उनके रहने के लिए अनुकूल वातावरण होता तो निश्चित तौर पर तेंदुए आबादी का रुख नहीं करते। तेंदुआ बूढ़ा होने, बीमार होने या घायल होने पर शिकार करने में अक्षम होते हैं। तब वे आसान शिकार कुत्ते, गाय की तलाश में आबादी का रुख करते हैं।