मसूरी- एमपीजी कालेज में महान कवियत्री महादेवी वर्मा की जयंती पर साहित्य परिषद की ओर से कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें कवियों ने जहां महादेवी के काव्य पर चर्चा की वहीं अपनी कविताओं के माध्यम से समाज को संदेश देने का प्रयास किया। कवियों ने बसंत ऋतु व होली के गीतो से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। डा. राम विनय सिह ने मसूरी पर होली की कविता सुनाते हुए कहा कि पर्वतों की रानी के कपोल पर सजा है रंग, देख देख अन्य चोटियां भी जलने लगी। एमपीजी कालेज के बुरांस सभागार में आयोजित कवि गोष्ठी में कालेज के साहित्य परिषद प्रभारी डा. प्रमोद भारतीय ने कवि गोष्ठी का संचालन करते हुए महान कवि महादेवी वर्मा के बारे में विस्तार से बताया व कहा कि वह हिंदी साहित्य में छायावादी की बड़ी हस्ताक्षर होने के साथ ही करूणा व संवेदना की कवि थी। इस मौके पर एमपीजी कालेज हिंदी विभागाध्यक्ष डा.ा रमेश पाल सिंह चैहान ने कहा कि उनका साहित्य संपूर्ण विश्व का साहित्य है उन्होंने कहा कि महादेवी वर्मा करूणा, विश्वबंधुत्व की भावना व संवेदनशीला की कवि थी। देहरादून से आये कवि डा. राम विनय सिंह ने कवियत्री महादेवी वर्मा के बारे में कहा कि वह हिंदी साहित्य के मंदिर की सरस्वती थी। उन्होंने अपनी कविता समेकित राष्ट्र की संचेतना का पर्व है होली, मनुज की मानवी संवेदना का पर्व है होली सुनाई। नदीम बर्नी ने इन्सानियत को रेखांकित करते हुए कहा, सोच अच्छी हो तो जीशान बना देती है, सोच इन्सान को इन्सान बना देती है। मशहूर शायर शादाब मशहदी ने कहा, नदियों की अविरल धारा को दुलराया, मैंने तटबंधों का गीत नहीं गाया। डाॅ. राकेश बलूनी ने रंगों की पहचान कहाँ है जाति धर्म अरु बोली की, ये तो हो जाते दीवाने फागुन में हर होली की। नीता कुकरेती ने साँक्यों बिटि खड़ा छन पहाड़ हमतैं धै छन लगौणा। इस मौके पर आये कवियों ने होली सहित अन्य कविताएं सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। अंत मंे प्रधानाचार्य डा. सुनील पंवार ने सभी का आभार व्यक्त किया व काव्यगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कविता गिरने लगे हैं बूढे पात, नयी कोंपलें आने को हैं, न ही विक्षोभ टूटे पल्लव पर देखो वसन्त आने को है सुना कर वसंत का स्वागत किया। मसूरी से सतीश कुमार की रिपोर्ट