पिथौरागढ़ नगर के लिए लोगों के लिए आज का दिन (गुरुवार) बेहद महत्वपूर्ण है। नगर की रामलीला आज 125 वें वर्ष में प्रवेश कर रही है। तमाम उतार-चढ़ाव के बीच रामलीला मंचन ने चीड़ के छिलकों की रोशनी से लेकर अत्याधुनिक एलईडी बल्बों की रोशनी तक का सफर तय किया है। नगर की रामलीला मंचन साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल रही है। लेखक राजेश मोहन उप्रेती ने पिथौरागढ़ की रामलीला पर गहन शोध कर महत्वपूर्ण जानकारियों जुटाई हैं। उनकी पुस्तक धरोहर बताती है कि वर्ष 1897 में तत्कालीन डिप्टी कलक्टर देवीदत्त मकड़िया के प्रयासों से पिथौरागढ़ में रामलीला मंचन की शुरूआत हुई। तब पिथौरागढ़ में बिजली की कोई व्यवस्था नहीं थी। मंचन के लिए चीड़ की लकड़ियों की मशाल बनाई जाती थी। केशव दत्त पंत रामलीला मंचन के पहले वक्ता मैनेजर थे। वाद्य यंत्र कम थे लोक कलाकार हरकराम ने सारंगी और जैंतराम ने तबले में संगत दी थी। पहले मंचन में राम की भूमिका कमलापति ने और सीता की भूमिका पूर्णानंद पुनेठा ने निभाई थी। कुछ ही वर्षो में रामलीला मंचन ने ख्याति प्राप्त कर ली। तब सीमांत के दारमा जौहार से लेकर नेपाल तक के श्रद्धालु रामलीला मंचन देखने के लिए यहां पहुंचते थे। नगर के पुराने मुस्लिम परिवारों को मंचन में विशेष योगदान रहा। इन्हीं परिवारों के लोग कलाकारों के मेकअप की व्यवस्था संभालते थे।