सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म के एक आरोपी के मामले में कहा कि, अपराध के शिकार व्यक्ति के साथ हुए अन्याय की भरपाई के लिए अदालत किसी को अन्याय का शिकार नहीं बना सकता है।
शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी छह साल की बच्ची से कथित दुष्कर्म और हत्या के मामले में मौत की सजा पाए एक व्यक्ति को बरी करते हुए की। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के दिए बयानों में गंभीर अंतर्विरोध हैं और ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने इसे पूरी तरह से नजरअंदाज किया है।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा कि, आरोपी इतना गरीब है कि, वह सत्र न्यायालय में भी अपनी पैरवी के लिए एक वकील रखने का खर्च उठाने की स्थिति में नहीं था। इसके अलावा पीठ ने मामले की जांच ठीक से नहीं करने के लिए अभियोजन पक्ष की भी आलोचना की।
पीठ ने कहा कि, हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं कि, ये छह साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या का गंभीर मामला है।अभियोजन पक्ष ने जांच ठीक से नहीं कर पीड़िता के परिवार के साथ अन्याय किया है। बिना किसी सबूत के अपीलकर्ता पर दोष तय किया गया।