आजादी के बाद हरिद्वार में हुए दो विधानसभा चुनाव सचमुच अभूतपूर्व थे। चुनावों में स्थानीय के नाम पर अस्मिता बचाने का ऐसा सवाल खड़ा हुआ कि पार्टियों की बाध्यता के सारे बंधन टूट गए। नगर की प्रतिष्ठा बचाने के नाम पर अलग-अलग दलों के कार्यकर्ता एक मंच पर आ गए थे। नतीजा यह हुआ कि एक बार तो उस जमाने में पंडित जवाहर लाल नेहरू के घनिष्ट मित्र और यूपी के कैबिनेट मंत्री रहे शांतिप्रपन्न शर्मा को भारी पराजय झेलनी पड़ी।
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ऐसा पहला चुनाव वर्ष 1968 में हुआ था। तब हरिद्वार विधानसभा सीट को परवादून सीट कहा जाता था, जिसका विस्तार ऋषिकेश और डोईवाला तक था। चुनाव में हरिद्वार शहर से किसी को कांग्रेस का उम्मीदवार बनाने की बात जोर पकड़ गई। लेकिन ऋषिकेश निवासी शांतिप्रपन्न शर्मा बड़े नेता थे, विधायक और कैबिनेट मंत्री थे। इसलिए हरिद्वार के लोगों की नहीं सुनी गई। इस पर हरिद्वार की दलीय राजनीति गौण हो गई और जनसंघ, सोशलिस्ट, कम्युनिस्ट आदि सभी एक मंच पर आ गए।